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विश्वकर्मा जयंती और हम

17 सितम्बर 2022

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पौराणिक वास्तुकार अभियंत्रक विश्वकर्मा जयंती शुभमंगलम् ।
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मनुष्य की यह स्वभाविक मनोवृत्ति है कि जब वर्तमान में हताश होता है तो अतीत संबल लेने की कोशिश करता है या भविष्य के स्वर्णिम स्वप्न बुनता हैं।पश्चिम ने भविष्य के स्वप्न बुनने,वर्तमान की परिस्थितियों से लड़ने का मार्ग चुना है,जबकि पूर्वी दुनियाँ का उत्तरी हिस्सा भी देर-सबेर पश्चिम के रास्ते पर चल निकला।परन्तु दक्षिणी हिस्सा वर्तमान हताशा से उबने के लिए अतीत या देवा शक्ति की ओर देखने का सहज मार्ग चुना ।वास्तु और अभियंत्रण के लिए पश्चिम और पूरब के उत्तरी हिस्से पर निर्भर होकर अतीत या दैवलोक में जाकर दो क्षण की खुशियाँ मना लेता है।आश्चर्य होना चाहिए,हमने लम्बे समय से वास्तु व अभियंत्रण के क्षेत्र में कोई मौलिक उपलब्धि नहीं हासिल की,निर्यात घटता जा रहा है,आयात पर निर्भर होते जा रहे है,फिर खुश है।
कल मेरे पास एक फिजिक्स में गोरखपुर से पीएचडी कर रहे छात्र की काल आयी।जिसे किसी मेटल पर काम कर रहा है,परन्तु उसके एनालिसिस के विश्वविद्यालय मे कोई सुविधा नहीं है।वाराणसी,कानपुर और दिल्ली में है,जहाँ एनालिसिस करना मँहगा होने के साथ आफिसियल संबंधो की झंझट है।ऐसे में यूनिवर्सिटी कालेज संस्थान की बिल्डिगे खड़ी हो रही है उद्घाटन हो रहे हैं।पर आधार भूत सविधाये नदारद है।मेडिकल कालेज एम्स के उद्घाटन भी हो रहे है परन्तु आवश्यक यंत्र,संसाधन,मावनीय संसाधन नहीं है।ऐसे मे भला विश्वकर्मा जी क्या कर सकते हैं। 

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रचनाएँ
कोरोना काल कथा -स्वर्ग में सेमीनार
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दहकते दिनों की दारुण दास्तान : कोरोना काल कथा-स्वर्ग में सेमिनार- उद्भव मिश्रा ‘कोरोना काल कथा स्वर्ग में सेमिनार’ दिवंगत विभूतियों के माध्यम से दर्शन, कला और विज्ञान के अनुशासनों के माध्यम से लेखक ने कोरोना काल की विसंगतियों और विडम्बनाओं का जीवंत दस्तावेज़ पेश किया है जो निश्चय ही पाठक के भीतर एक समझ पैदा करने में सहायक हो सकता है । ‘किसी आपद व्यापद का कारण मनुष्य ही होता है। यह मनुष्य ही नहीं प्रत्येक पदार्थ के साथ होता है, जैसे स्वर्ण की चमक ही उसका संकट है।पुष्प की मधुर मादक गंध ही उसके अस्तित्व के लिये अन्त कारक है। इस प्रकार मनुष्य की बुद्धि ही मनुष्य के लिए संकट बन चुकी है ।एक परमाणु की शक्ति के ज्ञान ने सत्ताप्रिय मनुष्य को आत्मध्वंसक बना दिया है।‚ कथाकार अचल पुलस्तेय कवि और लेखक ही नहीं एक चिकित्सक भी हैं।सामाजिक विज्ञानों के गहन अध्येता होने के साथ-साथ प्राकृतिक विज्ञानों पर भी समान अधिकार रखते हैं प्रकृति और वनस्पतियों से रचनाकार पुलस्तेय का गहरा नाता है।जिसे प्रस्तुत काल कथा में देखा जा सकता है- ‘पितामह पुलत्स्य के आदेश पर अर्काचार्य रावण ने कहा-हे लोक चिंतक मनीषियों प्रस्तुत मधुश्रेया पेय के निर्माण का मुख्य घटक मधुयष्टि (मुलेठी) है।जो दिव्य मेध्य रसायन है।यह मधुर, शीतल, स्नेहक बलकारक, कफनाशक, स्वप्नदोषनाशक, शोथनाशक, ब्रणरोधक है।‚ अपने आस पास घटित होने वाली परिघटनाओं पर वैज्ञानिक विमर्श रचनाकार के मन का शगल है। कोरोना काल में जब सारी दुनिया थम सी गई थी,ताले में बंद थी तब अचल पुलस्तेय की लेखनी अपने दारुण समय का चित्रांकन कर रही थी,उन्हीं के शब्दों में ‘ऐसे काल का इतिहास दो तरह से लिखा जाता है जिसे इतिहास कहते हैं वह वास्तव में घटनाओं का संवेदनहीन संकलन होता है,जिसका केंद्र सत्ता की विजय गाथा होती है परंतु विकट काल का वास्तविक इतिहास कथाओं और कविताओं में होता है।‚ कोरोना का काल कथा स्वर्ग में सेमिनार ऐसे ही इतिहास कथा है जिसके केंद्र में राज सत्ता नहीं घरों में बंद आदमी है,उसकी पीड़ा है और समाधान भी।ऐसी कथा है जिसमें अप्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन के समय में भूखे प्यासे सड़क पर पुलिस की लाठी खाते,पैदल घर की ओर प्रस्थान करते देखा जा सकता है ।
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आयुर्वेद के इतिहास में महिला चिकित्सक

17 सितम्बर 2022
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 *(लेखक आयुर्वेद चिकित्सक, वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस आयोजन समिति के सदस्य, स्वतंत्र विचारक,लेखक,एवं ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका के संपादक हैं)  भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था कुल मान्य सात चिकित्सा पद

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महान गणराज्य गढ़मण्डला पुस्तक की समीक्षा- उद्भव मिश्र

17 सितम्बर 2022
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  किताब-महान गणराज्य मण्डला लेखक-डा.आर.अचल पुलस्तेय ,मूल्य-500 रू पेपर बैक प्रकाशक-नम्या प्रेस 213 वर्धन हाउस 7/28, अंसारी रोड,दरियागंज,दिल्ली जातियों के उत्थान पतन काइतिहास ही दुनियां का इतिहास है

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पौराणिक वास्तुकार अभियंत्रक विश्वकर्मा जयंती शुभमंगलम् । **** मनुष्य की यह स्वभाविक मनोवृत्ति है कि जब वर्तमान में हताश होता है तो अतीत संबल लेने की कोशिश करता है या भविष्य के स्वर्णिम स्वप्न बुनता

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