पौराणिक वास्तुकार अभियंत्रक विश्वकर्मा जयंती शुभमंगलम् ।
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मनुष्य की यह स्वभाविक मनोवृत्ति है कि जब वर्तमान में हताश होता है तो अतीत संबल लेने की कोशिश करता है या भविष्य के स्वर्णिम स्वप्न बुनता हैं।पश्चिम ने भविष्य के स्वप्न बुनने,वर्तमान की परिस्थितियों से लड़ने का मार्ग चुना है,जबकि पूर्वी दुनियाँ का उत्तरी हिस्सा भी देर-सबेर पश्चिम के रास्ते पर चल निकला।परन्तु दक्षिणी हिस्सा वर्तमान हताशा से उबने के लिए अतीत या देवा शक्ति की ओर देखने का सहज मार्ग चुना ।वास्तु और अभियंत्रण के लिए पश्चिम और पूरब के उत्तरी हिस्से पर निर्भर होकर अतीत या दैवलोक में जाकर दो क्षण की खुशियाँ मना लेता है।आश्चर्य होना चाहिए,हमने लम्बे समय से वास्तु व अभियंत्रण के क्षेत्र में कोई मौलिक उपलब्धि नहीं हासिल की,निर्यात घटता जा रहा है,आयात पर निर्भर होते जा रहे है,फिर खुश है।
कल मेरे पास एक फिजिक्स में गोरखपुर से पीएचडी कर रहे छात्र की काल आयी।जिसे किसी मेटल पर काम कर रहा है,परन्तु उसके एनालिसिस के विश्वविद्यालय मे कोई सुविधा नहीं है।वाराणसी,कानपुर और दिल्ली में है,जहाँ एनालिसिस करना मँहगा होने के साथ आफिसियल संबंधो की झंझट है।ऐसे में यूनिवर्सिटी कालेज संस्थान की बिल्डिगे खड़ी हो रही है उद्घाटन हो रहे हैं।पर आधार भूत सविधाये नदारद है।मेडिकल कालेज एम्स के उद्घाटन भी हो रहे है परन्तु आवश्यक यंत्र,संसाधन,मावनीय संसाधन नहीं है।ऐसे मे भला विश्वकर्मा जी क्या कर सकते हैं।