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विष्णु के चरणों से निकला अमृत है गंगा

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 कोई ‘नराकार ब्रह्म’ (राम, कृष्ण) को भजता है , तो कोई ‘निराकार ब्रह्म’ को; परन्तु कलियुग में मनुष्य के पाप-तापों की शान्ति ‘नीराकार ब्रह्म’ से ही होती है ।हिन्दी में ‘नीर’ जल को कहते हैं । ‘द्रव’

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