1. सर्प हार पहने गले, माला सोहे मुंड। बाघंबर तन पे सजे, भाल मध्य त्रिपुंड।। 2. सावन में गौ रस चढ़े, होता जल अभिषेक। भांग, धतूरा , मधु चखें, रख बाबा बहु भेष।। 3. चोट लगी रोया नही, बहुत बड़ा तू
जब पांचाली की मृत्यु हो गई, तो युधिष्ठिर ने पांडवों को जवाब क्यों दिया कि वह अन्य पांडवों की तुलना में अर्जुन से अधिक प्रेम करती है? मैंने सुना है कि द्रौपदी सभी पांडवों को समान रूप से प्यार करती थी।
पौराणिक कथा के अनुसार रावण एक ऐसा महाज्ञानी था जिसने 9 ग्रहों को अपने वश में कर लिया था और जब भगवान राम ने लंका जाने के लिए पुल बनाने की सोची, तो उन्हें रामेश्वरम में सबसे पूजा करानी थी। चूंकी उस समय
अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम जलपरी नागकन्या उलूपी था। उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानिरहित रहने का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित हो
कहते हैं कि भगवान शिव के कई पुत्र थे, जैसे गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, भौम आदि। उन्हीं में से एक अयप्पा स्वामी भी थे। अयप्पा स्वामी के जन्म की कथा बड़ी ही रोचक है। केरल के सबरीमाला में भगवान
हरि अनंत हरि कथा अनंता। रंगनाथ रामायण में एक सर्वथा नई कथा मिलती है जिसके अनुसार शूर्पणखा को एक पुत्र था जिसका नाम जंबुमाली था। कथा के अनुसार जब रावण ने अपने बहनोई विद्युज्जिह्व का वध कर दिया, उस समय
भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से
काग़ज़ वज़नदार होता हैजब नोट बन जाता हैरौंद डालता हैसारे आदर्श, मानवीयता, रिश्तेनिगल लेता है जीवन मूल्यझोपड़ी से लेकर महलों तकराज करता है वज़नदार काग़ज़ लेकिन उससे भी ज़्यादावज़नदार हो जाता
समस्त विश्व में *विशेष भगवत्कृपा* हमारे देश भारत पर हुई है क्योंकि भारतवर्ष में समय समय पर अवतार लेकर भगवान ने मानवमात्र को सदमार्ग पर चलना सिखाया है ! भारतवर्ष पर भी यह *विशेष भगवत्कृपा* इसलिए हुई क्
एक साधक या साधारण मनुष्य के मस्तिष्क में एक प्रश्न प्राय: होता है कि *आखिर भगवत कृपा कैसे प्राप्त की जाय ?* बिना ज्ञान के मनुष्य अंधकार में पड़ा रहता है ! *भगवत्कृपा कैसे प्राप्त की जाय ?* इसके विषय म
*भगवत्कृपा* प्राप्ति स्वत:सिद्ध मानकर पुरुषार्थ ना करना एक बड़ी भूल है ! योग शास्त्र के अनुसार मनुष्य के पुरुषार्थ को चार प्रकार के उद्देश्य में अभिव्यक्त किया गया है ! *धर्म:-* (जीवन आचार संबंधी
यह संपूर्ण जगत भगवतद्विभूति के द्वारा जीवन धारण कर रहा है ! *भगवत्कृपा* की धारा - प्रपात वर्षा हो रही है ! एक औंधे प्याले के समान मनुष्य का क्षुद्र मन उस *कृपा की* पूर्णता का अनुभव करने में असमर्थ है
अध्यात्म साधना का इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिनमें विषम तथा विपरीत परिस्थितियां ही भोगमय जीवन से वितृष्ण में बनाकर विषयी जीवो को जीवन्मुक्त महापुरुष बनाने में सहायक हुईं ! उदात्तीकरण की मनोवै
संसार के लोग जिसे काव्य समझते हैं वह सारी वस्तुएं उन साधनों के लिए त्याज्य हैं ! यहां जो कुछ श्रेष्ठ माना जाता है उस मन:स्थिति को प्राप्त जन के लिए वे सभी हानिकर ही है ! लोक में जिसे उन्नति समझा जाता
*भगवत्कृपा* के कई रूप हैं ! कई रूपों में *भगवत्कृपा* हमको प्राप्त होती रहती है ! *भगवत्कृपा* अपने आप में विचित्र भी है यह मनुष्य को भ्रमित कर देती है ! साधना मार्ग के कुछ पथिक अभ्युदय अथवा भौतिक उत्कर
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा,विकट रूप धरि लंक जरावा।।भीम रूप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे।।लाय संजीवन लखन जियाए,श्री रघुवीर
सुंदर जीवन निर्माण की आधारशिला भावशुद्धि है भावशुद्धि के बिना कर्म शुद्धि असंभव है ! भावअशुद्धि से भ्रांति तथा भावशुद्धि से शांति और परम पद की प्राप्ति होती है ! हीरे की प्राप्ति के पश्चात कांच के मनक
चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि पाकर मनुष्य परमात्मा का युवराज कहां गया है ! यह मानव जीवन पाकर मनुष्य जीवन भर मांगता ही रहता है और कुछ पा जाने पर उसे ही उपलब्धि मानने लगता है ! परंतु मानव
*भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए लोग भगवान से संबंध बनाने का प्रयास करते हैं उनको शायद यह नहीं पता है कि भगवान और भक्त के बीच दयालु - दीन , दानी - भिखारी , पतितपावन - पातकी , नाथ - अनाथ आदि
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,जय कपीश तीहुं लोक उजागर।राम दूत अतुलित बल धामा,अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।महावीर। विक्रम बजरंगी,कुमति निवार सुमति के संगी।कंचन बरन बिराज सु