आज
देखने गए war craft मूवी। ऑफिस से ही सभी लोग जीवी सिनेमा में देखने गए
थे। कई फिल्में ट्रेलर में ही ज़्यादा आकर्षक लगती हैं। असल में जब देखो तो बहुत निराशा
होती है। और ये निराशा हॉलीवुड की मूवीस के साथ ज़्यादा होती है। बॉलीवुड ने तो फॉर्मूला
प्रधान फिल्में बना बना के अपना स्तर और अपेक्षाएँ इतनी कम कर ली हैं कि घटिया फिल्म
से निराशा नहीं होती। हॉलीवुड ने अभी वो मुकाम नहीं बनाया है। लेकिन Fast and Furious सिरीज़ या फिर action
heroes की फिल्में बना बना के वो भी लगता
है एक फोरमुला ही खोजना चाह रहे हैं। नहीं तो जिस इंडस्ट्री को अपने स्क्रिप्ट ओरिएंटेड
होने का दंभ है वो ऐसी बकवास फिल्में कैसे बना रही है। टोल्कीन ने लॉर्ड ऑफ द रिंग्स
में मिडिल अर्थ की दुनिया जिस तरह से रची थी वो बेमिसाल थी। इतनी फ़ाइन डिटेल्स आपको
और कहाँ देखने को मिलेंगी। हयूमन्स, ओर्क्स, द्वार्फ़्स, होब्बिट्स, एल्फ़्स, ईगल, जितनी अच्छे से ये सारी रेस टोल्कीन ने बनायीं थीं
और फिर फिल्म ने भी उसे जस्टिफाए किया था। War
Craft में भी हयूमन्स और ओर्क्स को टोल्कीन
के नॉवेल से उठा लिया और उनके संघर्ष की कहानी बना दी गई है। फिल्म में जादू भी उतना
अच्छा नहीं है। जादू के नाम पे पुराने winamp
के visuals ज़्यादा दिखते हैं। कुल मिला कर अगर आपका वीकेंड का कुछ प्लान है
तो The Conjuring 2 देख लीजिएगा शायद वो ज़्यादा अच्छी हो। फ्राइडे आउटिंग
का यही पहलू अच्छा रहा कि लौटते में थोड़ी सी बीयर पी ली। लिटल इंडिया से उस्मान होटल
से बटर चिकन खा लिया। खैर पार्टी ऑफिस की तरफ से थी तो घटिया फिल्म भी उतनी नहीं आखरी।