अगस्त महीने की आखिरी किताब थी जीनेट वॉल्स की लिखी 'द ग्लास कैसल'। जीनेट वॉल्स एक अमरीकी जर्नलिस्ट हैं और ये उनका लिखा संस्मरण है। एक किताब जो उनके और उनके पिता के रिश्ते के बीच कुछ तलाश करती हुई सीधे दिल में उतरती है और कुछ हद तक उसे तोड़ भी देती है।
इंसान एक परिस्थितिजन्य पुतला है। उसका व्यक्तित्व परिस्थितियों के आसरे परत दर परत बनता चला जाता है। जब हम किसी इंसान से मिलते हैं तो दरअसल हम उसकी ज़िंदगी की तमाम परिस्थितियों से उपजे पूर्वाग्रहों, विचारों, फलसफ़ों, मान्यताओं और नैतिकताओं के समग्र से साक्षात्कार कर रहे होते हैं। जब ये किरदार आपस में एक दूसरे से मिलते हैं तो अपनी-अपनी परतों में कुछ जोड़ते, कुछ घटाते चलते हैं। कई बार अपनी ज़िंदगियों में पीछे मुड़कर देखने पर लग सकता है कि बहुत कुछ बदल सकता था अगर 'उस' मोड पर 'वो' फैसला न लिया होता या 'वो' फैसला ले लिया होता। कुछ सपने मलाल बन के रह जाते हैं और उनमें से कुछ मलाल गुजरते वक़्त के साथ कसक बन के सिर उठाते हैं, टीस पैदा करते हैं।
जीनेट वॉल्स का बचपन मुफ़लिसी में गुज़रा। उनके पिता एक जीनियस थे। गणित, फ़िज़िक्स और लिटरेचर में प्रकांड। अपनी बेटी से बहुत प्यार करने वाले। लेकिन इन सब बातों के साथ ही साथ एक शराबी भी। उनकी माँ जो एक लिटरेचर में रुचि रखने वाली, पेंटिंग करने वाली, आज़ाद ख़यालों वाली, खुले आसमान में उड़ने वाली चिड़िया है वो किसी भी तरह के नियमों में नहीं बंध सकती। नतीजा ये हुआ कि बच्चों को खुद ही अपना और एक दूसरे का ध्यान रखना अपनी उम्र में बहुत पहले ही सीख लेना पड़ा। माँ-बाप दोनों की रुचि पढ़ने में होने की वजह से उनके बच्चों को भी शुरूआत से ही लाइब्रेरी की आदत लग गई। लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनती गईं कि बच्चे बेहतर ज़िंदगी के लिए खुद सोचने लग गए और आगे चल कर एक बेहतर ज़िंदगी बना भी सके। वॉल्स के पिता का किरदार किसी फैंटेसी-सा लगता है और पढ़ने वाले के मन में किसी पेंडुलम सा एक फ़िलॉसफ़र से लेकर एक गुड-फॉर-नथिंग के बीच के आयाम में डोलता रहता है। उम्र के अंतिम पड़ाव में जब एक बाप अपने आप से पूछता है कि क्या मैंने अपनी बेटी के लिए कुछ किया है? क्या मैंने उसे सिर्फ निराश किया है? इसका जवाब वो खुद भी जानता है पर शायद किसी उम्मीद में बेटी से भी पूछता है। बेटी भी झूठ नहीं बोलना चाहती और बात टल जाती है। क्या वाक़ई टल पातीं हैं ऐसी बातें? पिता अपनी बेटी को बचपन से ही एक काँच के महल का सपना दिखाता था जिसे वो एक दिन उसके लिए बनाएगा। दोनों घंटों बैठकर उसकी बहुत-सी प्लानिंग करते, खूब सारे नक्शे बनाते, छत पर सोलर एनर्जी पैनल के लिए भी खूब कैल्कुलेशन करते। वही बाप जब मृत्यु शय्या पर लेटे हुए बेटी से कहता है कि मैं तुम्हारे लिए ग्लास कैसल नहीं बना पाया, तब बेटी कहती है - "कोई बात नहीं! लेकिन हमने उसकी प्लानिंग करने में एक शानदार समय गुज़ारा।" तब कहीं इस बात का एहसास होता है कि ज़िंदगी मंज़िल नहीं सफर की खूबसूरती के बारे में है।
एक मर्तबा क्रिसमस पर पैसे न होने पर पिता अपनी बेटी को शहर से दूर ले कर गया और आसमान में उसके साथ निहारते हुए उससे कहा - 'अपना पसंदीदा सितारा चुन लो। इस बार क्रिसमस में तुम्हें तुम्हारा मनपसंद तारा मिलेगा'। जब बेटी ने उससे कहा कि आप किसी को तारा नहीं दे सकते क्योंकि उनका कोई मालिक नहीं है। तब पिता ने कहा - 'उनका कोई मालिक अब तक नहीं है और इसीलिए सिर्फ आपको अपना दावा ठोंकना है, ठीक वैसे ही जैसे क्रिस्टोफ़र कोलम्बस ने अमेरिका पर ठोंका था।' बेटी ने चमकता हुआ वीनस चुन लिया। पिता के मरने के बाद जब कभी बेटी अपनी निजी ज़िंदगी में उदास होती तो शहर की बत्तियों की पहुँच से बाहर निकल आती और अपनी गाड़ी को सड़क के किसी किनारे रोक कर वीनस को ताका करती।
कुछ किताबें अच्छी होतीं है, कुछ बेहद अच्छी लेकिन कुछ किताबें आपको रुला देतीं हैं और उन किताबों के बारे में आप कुछ कह नहीं पाते क्योंकि उन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। 'द ग्लास कैसल' ऐसी ही एक किताब है जो आपको कभी आपको गुदगुदाती है, कभी रुलाती भी है, कभी दिल भी तोड़ती है लेकिन अंत में आपको speechless कर के छोडती है।
इस किताब को आप Amazon से खरीद सकते हैं।