कभी कुछ कहते हुए
थोड़ा रह जाता हूँ मैं
कभी आँखों के रस्ते
थोड़ा बह जाता हूँ मैं
मैं अव्यक्त हूँ
एक पहेली-सा
एक अनकही में
कुछ कह जाता हूँ मैं
अव्यक्त का अपना एक वजूद है
व्यक्त उसका ही तो प्रकट स्वरुप है
पर अव्यक्त किसका स्वरुप है ?
किस अमूर्त्य का मूर्त्य है ?
किसकी खोज है ?
किसको ढूँढता रह जाता हूँ मैं
एक अनकही में
कुछ कह जाता हूँ मैं
कैसा हो कि
हों दो अलग दुनियां
एक व्यक्त की ,
एक अव्यक्त की दुनिया
इस दुनिया में आये हों
उस दुनिया से सभी
जिस दुनिया में मौजूद हैं
वो सभी
जो व्यक्त न हुए
यहाँ कभी
पर उस दुनिया में भी
उन्हें व्यक्त कहें
या कहें अव्यक्त ही
इस जवाब के लिए
अव्यक्त की दुनिया में
बह जाता हूँ मैं
एक अनकही में
जाने क्या कुछ
कह जाता हूँ में