ये है कौन
जो बोल रहा हमारी बात
और हम हैं कि खुश हो रहे
तोड़ते नहीं मौन
जबकि हमें बोलना चाहिए अपनी बात
कि हम अपने प्रवक्ता खुद हैं
फिर भी रहकर खामोश
जोह रहे बाट
कि कोई तो बोले हमारी बात
कोई तो रक्खे हमारा पक्ष
ये है कौन
जिसकी बात सुन रहे हम होकर मौन
बिना पलकें झपकाए
टकटकी बांधे ताक रहे उसे
जैसे हो कोई मसीहा
या कोई जादूगर
क्यों नहीं पहचाने हम
अपने इस हमदर्द को
क्यों नहीं जानें उसके बारे में
ये तो पक्का है कि वो हमारे बीच से नहीं
ये भी मालूम है कि इसके पहले भी
आते रहे हैं हमदर्द बनकर जाने कितने
वे भी जो हममें से नहीं थे
और वे भी जो हमारे बीच से उभरे थे
मौका-परस्त दलाल बनकर
उस चोट की पीड़ा अब भी उभर आती है
और हमेशा की तरह
एक नई चोट खाने को
हम क्यों हो जाते हैं तैयार
अब भी समय है
कुछ तो सोचें यार,,,