सच ही है यार... ये भाई लोग दर्द मे भी मुस्कुरा जाते हैं... टूट चुके होंगे, पर कभी ख़ुद को टूटा हुआ दिखाएंगे नहीं हजारों तकलीफे होगी पर मुस्कुराना छोड़ेंगे नहीं। आज पता चला ये भाई ऐसे क्यों होते हैं... इन्हीं उंगलियों को पकड़ कर दुकान पर जाया करते थे। दीदी दीदी कह कर आगे पीछे घुमा करतें थे, और आज इतनी छोटी सी उम्र में एक पिता क्यों बन बैठें?
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