"पराली- कोई चारा भी तो नहीं?" लगता है समय आ गया है पीछे मुड़कर देखने का। उन्हें याद करने का जिन्होंने मानव और मानवता को जीने का वैज्ञानिक तरीका तब निजाद किया था, जब न मानव मानव को जानता था न मानवता परिभाषित थी। लोग स्वतः विचरण करते थे और रहन- सहन, भूख-भरम, आमोद- प्रमोद, स