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“फागुन गुनगुना रहा है”

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“फागुन गुनगुना रहा है” कुहरे से ढ़का हुआ आसमान दिखता निश्तेज है ठंड शेष है मथनी मथ रही है आँधियाँ जोर से कब उभरेगा मक्खन, उबलते दूध से पानी खुद ही पानी पिए जा रहा है॥ कल-कल, छल-छल की पहचान खूब शोर है हवा का जोर है उमड़ते घुमड़ते बादल इधर उधर कहीं जा रहे हैं कहीं से पाएँ रगर अपने

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