मापनी- 2122 2122 212 “गजल”ख्वाब आँखों में दिखा तो भा गयामौसम बिना बादलों के आ गयायाद तेरी थी घिरी घर छा गईनैन मेरे खुल गए तक ता गया॥खूब थी वो रात आ ढ़लने लगी भोर का है कारवाँ चलता गया॥लोग भी आकर मिले पादान पर पर न थी रौनक गिला बढ़ता गया॥ एक दिन वह शाम जब ढलने लगी दिख गया उनका महल कहता गया॥ क्या ह