“गीतिका”जाने कब धन भूख मरेगी, दौलत के संसार की शिक्षा भिक्षा दोनों पलते, अंतरमन व्यवहार कीइच्छा किसके बस में होती, क्यों बचपन बीमार है उम्र एक सी फर्क अनेका, क्या मरजी करतार की॥ भाग सरीखा नहीं सभी का, पर शैशव अंजान है खेल खिलौना सुखद बिछौना, नींद नहीं अधिकार की॥ उछल कूदना