“गीतिका”
जाने कब धन भूख मरेगी, दौलत के संसार की
शिक्षा भिक्षा दोनों पलते, अंतरमन व्यवहार की
इच्छा किसके बस में होती, क्यों बचपन बीमार है
उम्र एक सी फर्क अनेका, क्या मरजी करतार की॥
भाग सरीखा नहीं सभी का, पर शैशव अंजान है
खेल खिलौना सुखद बिछौना, नींद नहीं अधिकार की॥
उछल कूदना फरक न जाने, क्या अमीर क्या गरीब-रि
अब समान हक दे दे मौला, नदी नाव पतवार की॥
बैठ तो जाते सभी संग में, बिन पहचानी पाति में
ऊँच नीच का भेद न देखें, यात्रा थल उस पार की॥
अब अंतर क्यूँ झाँक रहा है, बचपन की इस झूल में
शब्द कहीं तो भाव कहीं है, चर्चा सु-अलंकार की॥
“गौतम” तेरी नजर अनूठी, सर्कस करतब फेर है
रहा शेर जंगल का राजा, वक्त धार तलवार की॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी