अपना अपना दृष्टिकोण
हर मनुष्य का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है। इसी प्रकार सुन्दरता के भी सबके पैमाने अलग-अलग हैं। यह आवश्यक नहीं कि एज व्यक्ति की नजर में जो सुन्दर है, वह दूसरे को भी उतना ही आकर्षित कर सके। केवल गौरा रंग सुन्दरता का कारण है, ऐसा नहीं है। काले रंग का व्यक्ति सुन्दर नहीं हो सकता, ऐसा भी नहीं है। यह सब व्यक्ति विशेष के सोचने और समझने का तरीका है।
कुछ लोग शारीरिक सौन्दर्य को अधिक महत्त्व देते हैं। वे प्रथम दृष्टया व्यक्ति के रंग-रूप को ही देखते हैं। वे मनुष्य के गुण, कर्म और स्वभाव को पीछे रखते हैं। सुन्दरता के पीछे भागने वालों को हो सकता है कि आने वाले समय में पछताना पड़ सकता है। चमड़ी का रंग बीमारी या आयु के साथ परिवर्तित हो सकता है। स्वभाव से यदि वह व्यक्ति कर्कश हो, उसकी आदतें उनके अनुकूल न हों, तो वह उनको अच्छा नहीं लगता।
ऐसे लोग बाद में पछताते हैं कि गोरी चमड़ी ने या सुन्दरता ने उन्हें धोखा दे दिया, कहीं का नहीं छोड़ा। उस समय वही बात हो जाती है- 'न उगलते बने और न निगलते बने।' यदि इन लोगों ने शारीरिक सुन्दरता के साथ उस व्यक्ति के आन्तरिक सौन्दर्य को भी परख लिया होता, तो अब यह स्थिति न बनती। इसीलिए सयाने कहता हैं- 'अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।'
इनके विपरीत कुछ लोग मनुष्य की आन्तरिक सुन्दरता को परखते हैं। वे शारीरिक सौन्दर्य को अधिक महत्त्व नहीं देते। उनका मानना है कि मनुष्य में गुण होने चाहिए। वह अपने गुणों से पहचाना जाता है। यदि उसमें गुण होंगे तो वह सबके हृदयों पर राज कर लेगा। बालक अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था, परन्तु विद्वत्ता के कारण बड़े बड़े विद्वान उसका सम्मान करते थे।
किसी कवि ने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए हैं-
किमपि अस्ति स्वभावेन
सुन्दरं वा अप्यसुन्दरम्।
यदेव रोचते यस्मै
भवेत्तत् तस्य सुन्दरम्॥
अर्थात् सुन्दरता और कुरूपता स्वभाव से किस में होती है अर्थात् किसी में नहीं होती। जिसे जो रुचिकर होता है, वही उसके लिए सुन्दर होता है।
कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि सुन्दरता किसी वस्तु या व्यक्ति में नहीं होती कि जिसे हम देख रहे हैं, अपितु किसी मनुष्य विशेष के दृष्टिकोण में होती है। उदाहरणार्थ एक गन्दा, मैला-कुचैला बालक जिसकी नाक बह रही है, वह भी अपनी माँ को संसार का सबसे अच्छा बच्चा दिखाई देता है। वही उसे अपना राजा बेटा लगता है। उसे दुनिया की सुन्दरता से कोई लेना देना नहीं होता।
जिन देशों की जलवायु ठण्डी होती है, वहाँ पर लोगों का रंग गोरा होता है। अतः वहाँ की सुन्दरता का पैमाना अलग होता है। इसके विपरीत जिन देशों में गर्मी अधिक होती है, वहाँ के लोगों का रंग काला होता है। इसलिए वहाँ के लिए सुन्दरता का मापदण्ड कुछ अलग होता है। कुछ देशों में मौसम के प्रभाव से लोगों का रंग गेहुआँ होता है। वहाँ सुन्दरता की कसौटी अलग ही होती है।
यानी देश और परिस्थितियों के अनुसार ही मनुष्य का रंग-रूप और उसकी सुन्दरता परखी जाती है। पूरे विश्व में जब एक ही रंग के लोग नहीं हो सकते, तब सब लोगों को एक ही तराजू से नहीं तौला जा सकता। इसमें विविधता तो रहेगी ही और हमें उसका सम्मान करना चाहिए। जो व्यक्ति इन सब बातों का ध्यान नहीं रखना चाहता अन्ततः उसे मुँह की खानी पड़ जाती है।
इस चर्चा का सार यही निकलता है कि मनुष्य को व्यर्थ ही पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए। जिन्हें हम भगवान कहते हैं, वे भगवान राम और भगवान कृष्ण भी काले थे। सभी मनुष्य उस ईश्वर के बनाए हुए हैं। सबको उसी मालिक ने रंग-रूप से सजाया है। अतः मनुष्य को कोई भी अधिकार नहीं बनता कि वह उसकी बनाई सृष्टि में दोष निकाले अथवा लोगों की आलोचना करता फिरे।
चन्द्र प्रभा सूद