चेहरा मनुष्य का आईना
हमारे अन्तस में जो कुछ होता है उसी की प्रतिच्छाया हमारे चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देती है और हमारे हाव-भाव फिर उसे और मूरत रूप दे देते हैं। कहते हैं- face is the index of mind.
विद्वान यदि ऐसा कहते हैं तो इसमें सार अवश्य ही होगा। हमारे मन के भाव चेहरे पर आते हैं, इसका अनुभव हम सब ने बहुधा किया है। आज इसका कारण जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है? मनुष्य में अपने भावों को छिपाने की महारत हासिल क्यों नहीं कर सका? क्यों चेहरे के हावभाव देखकर उसके मन की बात पढ़ ली जाती है?
इन प्रश्नों का उत्तर देने से पहले हम इस बोधकथा पर विचार करते हैं। हो सकता है इसे पढ़कर हमारी जिज्ञासा का कुछ समाधान हमें मिल जाए।
एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा- "मेरे कर्मचारी मेरे प्रति ईमानदार नहीं है। मेरी पत्नी मेरे बच्चे और सभी दुनिया के लोग स्वार्थी हैं, कोई भी सही नहीं हैं।"
गुरु थोडा मुस्कुराए और उन्होंने उसे एक कहानी सुनाई- एक गाँव में एक अलग-सा कमरा था उसमें एक हजार शीशे लगे थे। एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी। उसने देखा एक हजार बच्चे उसके साथ खेल रहे है और उसे आनन्द आने लगा। जैसे ही उसने अपने हाथ से ताली बजाई सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाने लगे। उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है और यहाँ वह सबसे अधिक प्रसन्न रह सकती है। वह बार बार यहाँ आना चाहेगी।
इसी जगह पर एक उदास आदमी आया। उसने अपने चारों और हजारों दुखी और रोष से भरे चेहरे देखे। वह बहुत दुखी हुआ और उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाना चाहा, उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है। उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है। वह यहाँ दुबारा नहीं आना चाहता और उसने वह जगह छोड़ दी।
इसी तरह यह दुनिया भी एक कमरा है जिसमें हजारों आईने यानी शीशे लगे हुए हैं। जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वही हमें सर्वत्र दिखाई देता है। हम अपने मन को बच्चों की तरह सरल, सहज और निश्छल रख सकें, तो यह दुनिया हमारे लिए स्वर्ग की तरह ही आनन्ददायी हो जाएगी।
हमें अपने मन को बस संकुचित नहीं बनने देना है बल्कि उसे विशाल बनाना है। यह कोई ऐसा कठिन कार्य नहीं है जो हम कर नहीं सकते। बस मन में सोई हुई इच्छाशक्ति को जगाना है।
हृदय में जो भाव होते हैं वे मनुष्य के चेहरे पर स्पष्टतः दिखाई देते हैं। वह उनको छिपा नहीं सकता क्योंकि उसके चेहरे के हावभाव देखकर उसके मन को आसानी से पढ़ा जा सकता है।
सज्जनों की स्वभावगत सरलता और जनमानस के प्रति उनका अगाध प्रेम उनके चेहरे से छलकता है। सन्तों के मुख पर उनकी भक्ति का तेज दिखाई दे जाता है। मनुष्य का भोलापन भी किसी से छिप नहीं सकता।
इसके विपरीत दुर्जनों की कठोरता, उनकी क्रूरता की झलक उनके चेहरों पर प्रत्यक्ष देखी जा सकती है जिससे सभी समझदार लोग बचकर निकलना चाहते हैं। यही कहते हैं कि इनके मुँह कौन लगे।
इसी प्रकार दुःख-तकलीफ और कष्ट-परेशानी को भी चेहरे की रेखाओं में पढ़ा जा सकता है। मानवोचित गुण दया, ममता, करुणा, सहृदयता आदि गुण मनुष्य की पहचान बनते हैं। इनके अतिरिक्त क्रोध, ईर्ष्या, नफरत, लालच (लार टपकना), असहायता, दयनीयता आदि भावों को चाहकर भी मनुष्य किसी से छुपाने में सफल नहीं हो सकता।
कुछ लोग इस कला में दक्ष होते हैं उनके मन की बात जोर देने पर भी कोई नहीं जान पाता। उनका हृदय सभी प्रकार के द्वन्द्वों को सहन करने में समर्थ होता है। वे हर स्थिति में एकसमान रहते हैं।
इस तरह मनुष्य का चेहरा उसकी चुगली कर देता है। यदि वह नहीं चाहता कि उसकी चोरी पकड़ी जाए तो उसे अपने मन को साधना होगा। तभी उसके मजबूत हृदय के भाव किसी दूसरे को नहीं दिखाई देंगे।
चन्द्र प्रभा सूद