जिन्दगी का गणित
मनुष्य की जिन्दगी का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि वह किसके लिए जी रहा है? यद्यपि वह स्वयं और अपने परिवार की खुशहाली के लिए अपनी सारी ताकत झौंक देता है तथापि सारी आयु इस सत्य से अन्जान रहता है कि उसके लिए कौन जी रहा है? उसकी असली ताकत कौन लोग हैं?
जिन्दगी हर कदम पर मनुष्य की परीक्षा लेती है। इस परीक्षा में उसे नम्बर तो नहीं मिलते पर उसे उत्तीर्ण होना पड़ता है। लोग यदि सच्चे मन से उसे याद करें तो यह निश्चित है कि वह पास हो गया है।
इस धरती पर कोई भी ऐसा इन्सान नहीं है, जिसे किसी समस्या से दो-चार न होना पड़े। इसी तरह इस पृथ्वी पर कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका कोई समाधान न किया जा सके। मनुष्य को समस्या के बारे में सोचते रहने पर बहुत से अनावश्यक बहाने मिल जाते हैं। इसके विपरीत इसके समाधान पर विमर्श करने से जीवन में कोई-न-कोई हल अवश्य निकल आता है।
जीवन का मार्ग बहुत ही कठिन है, काँटों से भरा हुआ है। इसे सरल नहीं बनाया जा सकता। परन्तु स्वयं को मजबूत बना लेने से उसका सामना करने की शक्ति मिलती है। जिन्दगी में ऐसा समय कम ही आता है, जिसे हम बहुत अच्छा समय (golden period) कह सकते हैं। समय को अपने प्रयास व परिश्रम से अपने अनुकूल बनाना पड़ता है।
जब मनुष्य जीवन में संघर्ष के पथ पर चल रहा होता है, उस समय वह निपट अकेला होता है। जब उसे सफलता मिलती है तब बहुत से लोग उसके साथ चलने लगते हैं। वह उनका आदर्श बन जाता है। परन्तु जब उसे मूर्ख समझकर संसार उस पर हँसने लगता है तब वह हिम्मत करके चमत्कार करता है और नए इतिहास की रचना करता है।
जिन्दगी का गणित बहुत ही विचित्र है। जितना हो सके अपने व्यवहार से मित्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए और शत्रुओं को कम करना चाहिए। अपने दुखों को दूर करने के लिए दूसरों के साथ सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने पर मनुष्य को मानसिक सुख और शान्ति मिलती है। इस प्रकार परोपकार करके वह अपने अच्छे समय का भी सदुपयोग कर सकता है।
यथासम्भव अपने अहंकार को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार करने से मनुष्य को अपनों का प्यार और सहारा मिलता है। इससे उसका शेष जीवन बड़ी सुविधा से व्यतीत होता है।
मनुष्य की यह जिन्दगी दो पल की है अर्थात् कुछ ही समय के लिए उसे यह जीवन मिला है। इसलिए उसे कोशिश यही करनी चाहिए कि वह कुछ ऐसे कार्य अपने जीवन में कर जाए जिससे फूलों की तरह उसकी सुगन्ध चारों ओर बिखरती रहे। लोग उसके इस संसार से चले जाने के बाद भी याद रखें। समस्या यह है कि मनुष्य जब जीना आरम्भ करता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। उस समय वह अपनेटडडड करणीय कार्यों को चाहकर पूर्ण नहीं कर पाता।
मनुष्य को अपने रिश्तों को मोतियों की तरह सदा सहेजकर रखना चाहिए। यदि कोई सम्बन्धी रूठकर अलग हो जाए तो उसे मनाकर अपने करीब लेकर आना चाहिए। उनके किसी व्यवहार से मनुष्य को अपनी शान्ति नष्ट नहीं करनी चाहिए। इन्सान दुनिया से लड़ सकता है, पर अपनों से नहीं। इसका कारण है कि अपनों से उसे होड़ नहीं लगानी होती बल्कि उनके साथ अपना जीवन बिताना होता है। रिश्तों की डोर गलतफहमी होने के कारण कमजोर पड़ती है।
जिन्दगी में भी तूफान की हलचल मचाने दुख, कष्ट, परेशानियाँ आदि आते रहते हैं। इनका आना भी जरूरी है, नहीं तो एक ही ढर्रे पर सीधा-सीधा चलता हुआ इन्सान उकता जआता है। इसी समय यह पहचान हो पाती है कि कौन हाथ छुड़ाकर भागता है और कौन हाथ पकड़कर चलता है। यानी कौन अपना है, कौन अपनेपन का दिखावा कर रहा है और कौन पराया है। जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जो मनुष्य को लाभ नहीं पहुँचाते पर अपने साथ से उसे अमीर अवश्य बना देते हैं।
जीवन जीने के लिए अपनों का साथ और सच्चे सहयोगियों की आवश्यकता होती है। प्रयास यही करना चाहिए कि हितचिन्तकों को अपने से दुर किया जाए और अपने मित्रों की सूची बड़ी करते हुए शत्रुओं को भी अपना प्रिय बनाया जाए।
चन्द्र प्रभा सूद