पूर्वजन्म कृत कर्मों का खेल
सभी मनुष्य अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार लेन देन का भुगतान करते हैं। हर मनुष्य अपने जीवन में स्वर्ग को पाने की कामना करता है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में गलत पासवर्ड डाल देने से एक छोटा-सा मोबाइल नहीं खुल सकता, तो फिर गलत कर्मो को करते रहने से स्वर्गं के दरवाजे कैसे खुलेंगे? इसके लिए शुभकर्मों की अधिकता की आवश्यकता होती है। इसलिए एक ही घड़ी अथवा मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सब मनुष्यों के गुण, कर्म और भाग्य अलग-अलग होते हैं।
कर्मों के अनुसार शास्त्रों को तीन भागों में रख सकते हैं- ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र। ज्योतिष शास्त्र मनुष्य का भूत, वर्तमान और भविष्य की जानकारी देता है। बताता है कि अमुक दुख-सुख से राहत किस तरह पाई जा सकती है। कर्त्तव्य शास्त्र मनुष्य को अपने दायित्वों का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं। व्यवहार शास्त्र मनुष्य को व्यवहारिक ज्ञान देते हैं। इन तीनों शास्त्रों का अनुसरण करके मनुष्य सही मायने में जीवन जीकर अपना लोक और परलोक सुधार सकता है।
इस गम्भीर विषय को समझने के लिए एक प्रेरक कथा की सहायता लेते हैं। एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया- "मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों। इसका क्या कारण है?"
राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गए। अचानक एक वृद्ध खड़े हुए और बोले- "महाराज! आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।"
राजा ने घने जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार खाने में व्यस्त हैं। राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा- “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच विद्यमान एक अन्य महात्मा दे सकते हैं।'"
राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुँचा। राजा वहाँ का दृश्य देखकर हैरान रह गया। वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच- नोचकर खा रहे थे।
राजा को इस महात्मा ने भी डाँटते हुए कहा- ”मैं भूख से बेचैन हूँ, मेरे पास समय नहीं है। आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है, वह कुछ ही समय तक जिन्दा रहेगा, वही बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है।"
राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न। उत्सुकता प्रबल थी राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा। गाँव में उस दम्पति के घर पहुँचकर सारी बात बताई। जैसे ही बच्चा पैदा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित कर दिया।
राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा- "राजन्! समय मेरे पास भी नहीं है, किन्तु अपना उत्तर सुन लो। तुम, मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे। एक बार शिकार खेलते-खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे। अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली। हमने उसकी चार रोटियाँ सकीं। अपनी-अपनी रोटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख-प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहाँ आ गए।।
अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा- "बेटा! मैं दस दिन से भूखा हूँ ,अपनी रोटी में से मुझे भी कुछ दे दो, मुझ पर दया करो। इससे मेरा भी जीवन बच जाएगा।"
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले- "तुम्हें दे दूँगा तो मैं क्या खाऊँगा आग? चलो भागो यहाँ से।"
महात्मा फिर माँस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन्होंने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा - "बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये रोटी तुम्हें दे दूँगा तो क्या मैं अपना माँस नोचकर खाऊँगा?"
भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास आए, मुझसे भी रोटी माँगी, किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया- "चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ?"
अन्तिम आशा लिये वे महात्मा राजन, आपके पास भी आए, दया की याचना की। दया करते हुए खुशी से आपने अपनी रोटी में से आधी आदर सहित उन्हें दे दी। रोटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा।
बालक ने कहा- “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग भोग रहे हैं।"
यह कहकर वह बालक मर गया। धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं, किन्तु सबके रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद भिन्न होते हैं। इस प्रकार हर जीव अपने-अपने कर्म का भो भोगने के लिए इस सृष्टि में जन्म लेता है। पूर्वजन्मों में जो भी शुभाशुभ कर्म मनुष्य करता है, उन्हें तो बदला नहीं जा सकता। वर्तमान जन्म के कर्मों को करते समय सावधान रहना बहुत आवश्यक होता है। अतः अपना समय व्यर्थ गंवाए बिना शीघ्र ही मनुष्य को शुभकर्मों की ओर प्रवृत्त हो जाना चाहिए ताकि उसका इहलोक और परलोक दोनों ही सँवर सकें।
चन्द्र प्रभा सूद