न्याय-अन्याय का चक्र
इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो आज तक कोई भी युग ऐसा नहीं हुआ जिसमें न्याय-अन्याय न हुआ हो और आगे आने वाले समय में भी शायद इस अभिशाप से बचा जा सके। इसका कारण है परस्पर अहंकार का टकराव।
रामायण काल में भगवान श्रीराम का अगले दिन होने वाला राज्यतिलक सहसा वनवास में बदल जाना कैकेयी के अहंकार और स्वार्थ का परिणाम था। यहाँ श्रीराम के प्रति अन्याय किया गया, जिसे उन्होंने से सहर्ष स्वीकार कर लिया।
शूर्पणखा की नाक काटना, अहिल्या का अपमान होना व उसका मूर्तिवत हो जाना, बाली व रावण जैसे योद्धाओं का वध होना, भगवती सीता का हरण और उनकी अग्नि परीक्षा तथा गर्भावस्था में पुनः निष्कासन सभी इसी न्याय-अन्याय की कसौटी पर परखे जा सकते हैं।
इसी प्रकार महाभारत काल में भी न्याय-अन्याय का चला यह चक्र बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है। कौरवों द्वारा पाण्डवों का राज्य हथियाना, धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्ठिर का जुए के खेल में भाइयों और द्रौपदी को हार जाना, कौरवों का अन्यायपूर्ण राज्य करना और अन्ततः होने वाला महाभारत का युद्ध जिसमें सारे नियमों को अनदेखा करके छल-छद्म का सहारा लिया गया। इस युद्ध ने इतना भयंकर विनाश कर दिया।
ये सब उन सबके अहं का परिणाम ही कहा जा सकता है। महाभारत काल में नैतिक-अनैतिक, न्याय-अन्याय आदि के सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया था जिसका दुष्परिणाम का हम आज तक भुगतान रहे हैं और न जाने कब तक भोगेंगे?
उसके पश्चात मुगलों के शासनकाल का भयावह रूप हमें आज तक सताता है। उस समय जबरदस्ती तलवार के बल से लोगों का धर्म परिवर्तन कराना और न मानने पर नृशंसता करना, बहु-बेटियों का अपहरण करना, जन साधारण पर अत्याचार करना, मन्दिरों को ध्वस्त करना आदि बहुत से अन्यायपूर्ण कार्य किए गए। इसके फलस्वरूप देश में अशिक्षा, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों का जन्म हुआ। जिनसे महापुरुषों के अथक प्रयत्नों के बाद भी आज तक हम मुक्त नहीं हो सके।
अंग्रेजों के शासन काल में भी कुछ कम अन्याय नहीं हुआ। निहत्थों पर गोली चलना, लोगों को बन्धुआ मजदूर बना लेना, चलती ट्रेन से किसी भी नागरिक को नीचे फैंक देना, स्वतन्त्रता सेनानियों को फाँसी देना व काले पानी भेजना, जन साधारण पर अनेक प्रकार के अत्याचार करना आदि इन अंग्रेजों का शगल था।
ये तो थे न्याय-अन्याय के इतिहास से सम्बन्धित कुछ ऐसे उदाहरण जिन्हें प्रायः सभी लोग जानते हैं। इनके अतिरिक्त भी न जाने कितने शासकों और उनके चमचों के द्वारा जनता अन्याय का शिकार होती रही है। जिस भी कालखण्ड के विषय में पढ़ने लगो तो उस समय में हुए अन्याय और अत्याचार के विषय में पढ़कर मन उदास और परेशान हो जाता है।
आज राजतन्त्र नहीं प्रजातन्त्र है, पर जन साधरण को किसी प्रकार की राहत नहीं मिली है। सत्ता में कोई भी आए, उसे तो बस पिसना ही है। अन्याय का सामना करना ही उसकी विवशता है। पुरातन युग की तरह आज भी राजपुरुषों का विरोध करना, अपनी मौत को बुलावा देना ही होता है।
प्रतिदिन टी वी, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में ऐसी दुखद खबरें हम सुनते और देखते रहते हैं। आज ह्यूमन राइट वाले बहुत एक्टिव हो रहे हैं, किन्तु वे भी किसी को न्याय दिलाने में समर्थ नहीं हो रहे। ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वत्र होने वाला अन्याय शायद अधिक मुखर हो रहा है और इसीलिए उसका ही बोलबाला है। बहुत हो-हल्ला होता है, परन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात ही दिखाई देता है।
केवल भारत में ही नहीं पूरे विश्व में कमोबेश यही स्थिति है। कहीं भी किसी भी व्यक्ति ने जरा-सा सिर उठाने का दुस्साहस किया नहीं कि बस उसकी आफत आई समझो।
बेशक इक्कीसवीं सदी में हम जी रहे हैं, परन्तु सामन्तवादी सोच से अभी भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। इसलिए आज न्याय-अन्याय की जिम्मेदारी किसको दी जाए, यह समझ नहीं आ रहा।
चन्द्र प्रभा सूद