पैर से छूना वर्जित
भारतीय संस्कृति मानवीय मूल्यों की थाती है। वह पग-पग पर मनुष्य को अनुशासित करती है। हमारी संस्कृति जीवन मूल्यों को अपनाने पर बल देती है। यही कारण है कि विश्व की प्राचीनतम भरतीय संस्कृति अपने अमूल्य संस्कारों की बदौलत आज तक बची हुई है। यह कदम-कदम पर मनुष्य को ठोकर खाने से बचाने का प्रयास करती रहती है। जो लोग इन संस्कारों को अपनाते हैं, वे महान बन जाते हैं।
आज हम चर्चा करेंगे कि किन लोगों को पैर से स्पर्श करना वर्जित किया गया है। आचार्य चाणक्य हमें बता रहें हैं कि निम्न लोगों को अपने पैर से कदपि स्पर्श नहीं करना चाहिए-
पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च।
नैव गां न कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा।।
अर्थात् इन सात को कभी पैर नहीं लगना चाहिए- अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुमारी कन्या, वृद्ध पुरुष तथा अबोध बालक। इन्हें पैर से छूने का अर्थ है इनका अपमान करना है।
अग्नि के विषय में सब लोग अच्छी तरह से जानते हैं। वह अपने पास आने वालों को भस्म कर देती है। वह छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, गोरे-काले या लिंग और जाति के भेद से परे है। वह किसी का भी पक्षपात नहीं करती। उसने उन सबको जला देने का अपना कार्य बड़ी अच्छी तरह से करना होता है। अपने पास आने वाले सबको वह जला देती है। अपनी सुरक्षा के लिए उसे पैर से कभी भी स्पर्श नहीं करना चाहिए।
गुरु मनुष्य का सर्वांगीण विकास करता है। उसे विद्या का ज्ञान देता है। यदि किसी को सच्चे अर्थों में गुरु मिल जाए, तो वह उसे मुक्ति के मार्ग पर ले जाने का कार्य करता है। इसलिए गुरु को पिता भी कहा जाता है और देवता भी। वह पूजनीय तो होता ही है। ऐसे ज्ञानवान गुरु को कभी भी अपने पैर से नहीं छूना चाहिए। इस तरह करने से उसका अपमान होता है। मनुष्य को दोष तो लगता ही है और वह पाप का भागीदार भी बनता है।
ब्राह्मण को हमारे शास्त्रों में देवता के समान माना जाता है। ब्राह्मण का यहाँ रूढ़ अर्थ नहीं है, बल्कि विद्वान व्यक्ति को कहते हैं। यह समाज को दिशा देने का कार्य करता है। इसका कार्य अध्ययन-अध्यापन करने का होता है। ऐसे विद्वान व्यक्ति को अपने पैर से छूने का निषेध शास्त्र करते हैं। इनका सदा सम्मान किया जाना चाहिए। इन लोगों का तिरस्कार कदापि नहीं करना चाहिए।
गाय को भारतीय संस्कृति में माता कहा जाता है। इसकी माता के समान ही पूजा की जाती है। गोपाष्टमी इसी के नाम से मनाई जाती है। गाय के दूध, दही, घी और माखन आदि को खाकर मनुष्य पुष्ट होता है। इसका मूत्र में कई औषधीय गुण हैं। पुरातन काल में गोधन को सबसे बड़ा धन मन जाता था। जिसके पास अधिक गौवें होती थीं, वह उतना ही समृद्ध व्यक्ति माना जाता था। भगवान श्रीकृष्ण को इनसे बहुत प्यार था। इसीलिए इसे पैर से छूना वर्जित किया गया है।
कुमारी कन्या भगवती देवी का रूप मानी जाती है। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों में इसकी पूजा करने का विधान है। वैसे भी कहा जाता हैं कि बड़े पुण्यों का उदय होने पर किसी गृहस्थ के घर कन्या का जन्म होता है। कन्या का विवाह करना बहुत ही पुण्यकारक माना जाता है। लोग इसके पैर छूकर, इसका आशीर्वाद लेते हैं। ऐसी कन्या का अपने पैर से कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए।
वृद्ध पुरुष अनुभवों की खान होते हैं। आयु की दृष्टि से वृद्ध होने के कारण इनका सम्मान करना चाहिए, तिरस्कार कदापि नहीं करना चाहिए। उन्होनें अपना पूरा जीवन व्यतीत किया होता है। इस अवस्था में वे आदरणीय बन जाते हैं। वैसे भी हमारी संस्कृति बुजुर्गों की सेवा-सुश्रुषा करने पर बल देती है। उन्हें देवता के समान ही पूजनीय मानती है। पैर से छूकर इनका अनादर नहीं करना चाहिए।
अबोध बालक को भगवान का ही रूप कहा जाता है। उसे अभी इस संसार की हवा नहीं लगी होती। वह छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष आदि अवगुणों से रहित होता है। उसका हृदय शुद्ध और पवित्र होता है। वह सबको अपना समझता है, इसलिए जो उसे प्यार से बुलाता है, उसके पास चला जाता है। उनके साथ खेलता है, मस्ती करता है। ऐसे अबोध बालक को अपने पैर से नहीं छूना चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि इन सबको पैर से छूना असभ्यता कहलाती है। ये सभी वन्दनीय होते हैं। इनका हृदय से सम्मान करना चाहिए। कैसी भी परिस्थिति हो सभ्य इन्सान को कभी भी अपने पैर से छूकर इनका निरादर नहीं करना चाहिए। यदि गलती से इन्हें पैर लग जाता, तो हमारे पूर्वज उसे अपने सिर पर लगाकर क्षमा याचना करते थे।
चन्द्र प्रभा सूद