नारी का सम्मान
स्त्रियाँ समाज का एक विशिष्ट अंग हैं। वे घर-परिवार की धुरी हैं। उनका सम्मान हर स्थिति में होना चाहिए। किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह उनका तिरस्कार करे अथवा उन्हें अपशब्द कहे। स्त्री और पुरुष गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। उनमें से एक भी यदि बिगड़ जाए, तो गाड़ी ठीक तरह से नहीं चल सकती। इसलिए उन दोनों का समान रूप से चलायमान होना बहुत ही आवश्यक होता है।
दुर्भाग्यवश मध्यकाल में नारी को पीछे छोड़कर पुरुषवर्ग ने अपना आधिपत्य जमा लिया। वह वर्ग अपने अहं के कारण स्त्री को दोयम दर्जे का समझने लगा। उस समय समाज पुरुष प्रधान समाज बन गया। स्त्री पर मनमाने अत्याचार होने लगे और उसे रूढ़ियों में जकड़ दिया गया। तब यह स्थिति बहुत ही कष्टकारी बन गई थी। समय बीतते कई समाज सुधारकों ने स्त्री के जीवन स्तर को ऊपर उठाने का प्रयास भी किया। अपने इस कार्य में वे काफी हद तक सफल हुए।
यहाँ 'मनुस्मृति:' के दो श्लोकों को उदधृत करना चाहती हूँ। इन दोनों श्लोकों में भगवान मनु ने स्त्रियों के सम्मान के विषय कहा है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।
अर्थात् जिस घर में नारियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ इनका आदर नही होता, वहाँ पर सभी प्रयोजन निष्फल हो जाते हैं।
तथा
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।
अर्थात् जिस कुल में स्त्रियाँ शोक-संतप्त रहती हैं, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है या उसकी अवनति होने लगती है । जहाँ स्त्रियां प्रसन्नचित्त रहती हैं, वह कुल प्रगति करता है।
यह बात हमारी भारतीय संस्कृति में आदिकाल में ही मनु महाराज ने कही थी कि जिस कुल में स्त्रियाँ पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है। जिस घर वा कुल में स्त्रियाँ शोकातुर होकर दुःख प्राप्त करती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है, वहाँ सारे कार्य असफल हो जाते हैं। जिस घर या कुल में स्त्रियाँ आनन्द, उत्साह और प्रसन्नता में भरी हुई रहती हैं, वह कुल सर्वदा उत्तरोत्तर बढ़ता रहता है।
स्त्रियों का घर में प्रसन्नचित रहना बहुत आवश्यक है। ये खुश रहती हैं, तो घर में प्रसन्नता का वातावरण रहता है। वहाँ मानो स्वर्ग जैसा माहौल रहता है। वह घर सदा चहकता रहता है। वहाँ रहने वाले सदस्यों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। वे अपने कार्यों को ठीक से कर पाते हैं। घर में आने वाले मेहमान भी प्रफुल्लित होकर वहाँ से जाते हैं। घर में यदि कोई अभाव भी हो, तो वह नगण्य हो जाता है।
जिस घर में स्त्रियाँ उदास या मुरझाई हुई रहती हैं, उस घर में मुर्दनी छाई रहती है। वह घर नरक के समान बन जाता है। उस घर में अजीब-सा वातावरण रहता है। ऐसा घर काटने को दौड़ता है। वहाँ किसी भी सदस्य को ऊर्जा नहीं मिलती, बल्कि वहाँ सदैव नकारात्मक ऊर्जा का वास रहता है। उस घर में आने वाले भी प्रसन्न होकर वहाँ से नहीं जाते। सब कुछ होते हुए भी मानो, कुछ नहीं होता।
आज स्त्रियों को घर और बाहर दोनों मोर्चों को सम्हालना होता है। वे खिली रहती हैं, तो वे दोनों मोर्चों पर सफल हो जाती है। अन्यथा हर स्थान पर निराश और परेशान रहती हैं। उनके व्यवहार का घर और बच्चों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उनकी खुशी उनके घर को महकाती है और उनकी उदासी उनके घर को बर्बाद कर देती है। इन दोनों का अन्तर घर में प्रवेश करने वालों को सहज ही हो जाता है।
आज दुनिया के लोगों को स्त्रियों का महत्त्व समझ आ रहा है। स्त्री और पुरुष की समानता के लिए नियम और कानून बनाए जाने लगे हैं। इसके अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों ही एकसमान हैं। उनमें भेदभाव करना अथवा असमानता का व्यवहार करना कानूनन अपराध है। यहाँ स्त्रियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है। इस कानून का पालन न करने वालों के लिए यहाँ पर सजा का प्रावधान भी रखा गया है।
अपने आप में यह विधान स्त्रियों के लिए बहुत अच्छा है। मेरे विचार से इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए। घर, परिवार, समाज के सभी लोगों को मिलकर इस ओर ध्यान देना चाहिए। स्त्रियों पर अत्याचार न हों, उन्हें समाज में यथोचित मान-सम्मान मिलना चाहिए, जिसकी वे अधिकारिणी हैं। स्वस्थ समाज में नारी को उसकी गरिमा बनाए रखनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद