शक्ति प्रदर्शन
शक्तिशाली मनुष्य को अपनी शक्ति का घमण्ड नहीं करना चाहिए, अपितु उससे असहायों की सुरक्षा करनी चाहिए। यह ऐसा महान कार्य है, जिससे लोग उसकी शक्ति को पहचानते हैं और प्रशंसा करते हैं। मनुष्य को अपनी शक्ति का प्रदर्शन यदा कदा कर लेना चाहिए, अन्यथा लोग उसकी शक्ति के महत्त्व को ही नहीं समझते। वे उसे कायर मानने की भूल करने लगते हैं। जब वह अपनी शक्ति को दिखता है, तब वे उससे डरने लगते हैं।
निम्न श्लोक में कवि ने इस बात पर बल दिया है कि अपनी शक्ति का लोहा मनुष्य को मनवाना चाहिए-
अप्रकटीकृतशक्ति: शक्तोपि
जनस्तिरस्क्रियां लभते।
निवसन्नन्तर्दारुणि
लङ्घ्यो वह्नि तु ज्वलित:॥
अर्थात् शक्तिवान मनुष्य जब तक अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करता, तब तक लोग उसका तिरस्कार करते हैं। जैसे लकड़ी से कोई नही डरता, परन्तु जब वही लकड़ी जल रही होती है, तब लोग उससे डरने लगते है।
कवि के कहने का तात्पर्य यही है कि व्यक्ति को अपने सामर्थ्य एवं विवेक का परिचय समय-समय पर करवाते रहना चाहिए। तभी समाज में उसकी पूछ होती है। लोग उसके बल से डरकर, उससे दूर ही रहना पसन्द करते हैं। अतः जहाँ आवश्यक हो वहाँ अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना आवश्यक है। यहाँ लकड़ी का उदाहरण दिया है। जलती हुई लकड़ी से सब डरते हैं। कोई भी उसके पास जाने का साहस ही नहीं कर सकता।
साँप के जहर के कारण सब लोग उससे डरते हैं। यही वह साँप किसी को काट ले तो उसकी मृत्यु निश्चित होती है। वही साँप यदि डंक मारना छोड़कर साधु बन जाए, तो कोई भी उससे नहीं डरेगा। तब तो बच्चे भी उसकी पूँछ मरोड़ने लगेंगे। वह यदि न भी काटे, तो उसकी फुफकार ही बहुत होती है, सबको डराने के लिए। इसी शक्तिशाली साँप की जब मृत्य हो जाती है, तब चींटियाँ भी उसके ऊपर से गुजरने लगती है।
जलती हुई अग्नि से सब जीवों को भय लगता है। उस समय कोई भी मनुष्य या जीव-जन्तु उसके पास जाने, उसे छूने का साहस नहीं कर सकता। जब यही अग्नि क्रोध में आ जाती है, तो बड़े-बड़े जंगलों को भस्म कर देती है। इसी तरह यह अग्नि ऊँची-ऊँची इमारतों को जलाकर खाक कर देती है। परन्तु जब यही अग्नि ठण्डी हो जाती है या राख बन जाती है, तब चींटियाँ भी उसको रौंदने लगती हैं, वे भी उससे नहीं डरतीं।
भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने के समय, समुद्र से रास्ता माँगने के लिए तीन दिन तक उसकी पूजा-अर्चना की थी। परन्तु समुद्र ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी और उन्हें मार्ग नहीं दिया। जब उन्होंने उसका जल सूखा देने के लिए धनुष पर अपनी प्रत्यञ्चा चढ़ाई, तो समुद्र ने बिना समय गँवाए उन्हें पार जाने के लिए मार्ग दे दिया। यानी भगवान राम को क्रोध करना पड़ा था या अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना पड़ा था, अपनी इच्छा को पूर्ण करवाने के लिए।
मनीषी कहते हैं कि मनुष्य को स्वयं को किसी के समक्ष स्वयं को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि लोग समय आने पर उस मनुष्य की शक्ति का लोहा मान लेते हैं। पर समस्या यह है कि उस समय के आने की प्रतीक्षा कोई भी नहीं करना चाहता। शक्तिशाली मनुष्य भी शीघ्र ही अपनी पहचान एक बलशाली व्यक्ति के रूप में बना लेना चाहता है। वह किसी भी शर्त पर स्वयं को बलहीन नहीं कहलवाना चाहता।
कोई भी मनुष्य स्वयं को दूसरों के सामने कायर नहीं सिद्ध करना चाहता। वह सबके समक्ष अपनी एक पहचान बनाना चाहता है। समर्थ या शक्तिशाली ही संसार में जी सकता है। कहते हैं बड़ी मछली छोटी मछली की खाती है। कहने का तात्पर्य यही है कि जो शक्तिशाली होता है, वही संसार के किसी भी क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद