बच्चों जैसी निश्छल हँसी
बच्चों जैसी निश्छल हँसी हर किसी का मन मोह लेती है। जहाँ उसमें कुटिलता का भाव आया, वहीँ वह मात्र औपचारिकता रह जाती है। कुटिल हँसी हँसने वाले लोग न विश्वसनीय होते हैं और न ही किसी के हितचिन्तक।
सयानों का कहना है कि दिन में एक बार जोर से खिलखिलाकर अवश्य ही हँसना चाहिए इससे बहुत लाभ होते हैं। मनुष्य के अन्तस में विद्यमान अवसाद दूर हो जाता है और शरीर के अंग-प्रत्यंगों को प्रभावित करता है।
आज के भागमभाग वाले इस युग में सभी टेंशन में यानि परेशानी में रहते हैं। उनसे ऐसी हँसी हँसने की बात करना ही व्यर्थ हो जाता है। हँसने की मानसिकता यदि नहीं बन पाती, तो मुस्कुराया भी जा सकता है। हँसने का यह वरदान ईश्वर ने केवल मनुष्यों को ही दिया है, पशुओं को नहीं।
हँसने के पैसे नहीं लगते, यह तो मनुष्य की प्रसन्नता और सम्पन्नता की पहचान है। उसकी उन्मुक्त हँसी कई चेहरों को मुरझाने से बचा सकती है और उन्हें खुशियाँ दे सकती है। एक बच्चा जब खिलखिलता हुआ सबके सामने आता है, तो सब लोग अपनी परेशानी भूलकर उसके साथ खुश होने लगते हैं। उसकी भोली-भाली शरारतें हर किसी को गुदगुदा देती हैं। बड़े भी उस समय उसके साथ बच्चा बन जाते हैं और भूल जाते हैं कि वे बच्चा नहीं एक समझदार इन्सान हैं।
भारत में यहाँ-वहाँ पार्को में लाफ्टर क्लब के सदस्य अपनी हँसी का जलवा दिखाते हैं। उन्हें देखकर अनजान आदमी यही सोचेगा की ये सभी लोग पागल हो गए हैं, जो अजीब-सी हरकते कर रहे हैं।
आज की भागमभाग वाली जिन्दगी और काम के बोझ के कारण याद नहीं रहता कि खिलखिलाकर हम कब हँसे थे? हँसना बहुत महत्त्वपूर्ण है, परन्तु हम उसे अनदेखा करके अपनी मज़बूरियों का रोना रट रहते हैं। जिन्दगी हँसने की बदौलत स्वस्थ एवं खुशनुमा बन सकती है।
खुलकर हँसना व्यायाम की श्रेणी में आता है। यह व्यायाम मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, इमोशनल, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार लाता है। इसी प्रकार उसके वैयक्तिक, कार्यक्षेत्र और समाज की सेहत में भी सुधार लाता है।
हँसने से हृदय में रक्त का संचार होता है। शरीर से निकलने वाला एंडोर्फिन रसायन हृदय को मजबूत बनाता है। सबसे प्रमुख बात यह है कि हँसने से हार्ट-अटैक की सम्भावना कम हो जाती है।
हँसने से ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है और शरीर का प्रतिरक्षातन्त्र मजबूत हो जाता है। इससे कैंसर कोशिका और कई प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया एवं वायरस नष्ट हो जाते हैं।
यदि प्रातः काल हास्य ध्यान योग किया जाए, तो दिन भर प्रसन्नता रहती है। रात इस योग को करने से नींद अच्छी आती है। शरीर में कई प्रकार के हारमोंस का स्राव होता है, जिससे मधुमेह, पीठ-दर्द एवं तनाव से पीङित व्यक्तियों को लाभ होता है।
हँसने से सकारत्मक ऊर्जा बढती है, खुशहाल सुबह से कार्यक्षेत्र का माहौल भी खुशनुमा होता है। चुटकुले पढ़कर या सुनकर दिन की शुरुवात जोरदार हंसी के साथ की जा सकती है।
कहते हैं कि प्रतिदिन एक घण्टा हँसने से 400 कैलोरी ऊर्जा की खपत होती है और मोटापा नियन्त्रित रहता है।
प्रकृति भी यही समझाती है कि जिस प्रकार वर्षा के बाद खिली धूप, खिले हुआ फूल और लहलहाते हरे भरे पेड़ अपनी प्रसन्नता को प्रकट करते हैं, उसी प्रकार मनुष्य को भी समय-समय पर अपनी ख़ुशी प्रकट करते रहना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से स्पष्ट हुआ है कि अधिक हँसने वाले बच्चे अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान होते हैं। जापान के लोग अपने बच्चों को प्रारम्भ से ही हँसते रहने की शिक्षा देते हैं।
इस हँसने के लाभ बहुत हैं पर हानि कोई नही होती। इसलिए जब भी अवसर मिले खिलखिलाकर हँसना मत भूलिए। जब हम स्वयं खुश एवं स्वस्थ रहेंगे तभी अपने आसपास का वातावरण भी खुशनुमा बना सकेंगे। इससे स्वयं को तो आनन्द आता ही हैं, दूसरे भी आनन्दित होते हैं। हास-परिहास दुःख और कष्ट का दुश्मन है, निराशा और चिन्ता का अचूक इलाज यानि रामबाण औषधि है।
चन्द्र प्रभा सूद