दुनिया का मेला
ईश्वर की बनाई हुई यह सृष्टि बहुत खूबसूरत है। यहाँ चारों ओर चहल-पहल दिखाई देती है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ न समाप्त होने वाला कोई मेला लगा हुआ है। लोग इधर-उधर रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर अपनी मस्ती में चले जा रहे हैं। कहीं झूले सजे हुए हैं, कहीं बच्चे पशुओं की सवारी का आनन्द ले रहे हैं। लोकनर्तक यहाँ वहाँ नृत्य कर रहे हैं। दुकानों को सजाए दुकानदार आवाज लगाकर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।
कहीं पर सर्कस दिखाई जा रही है। अनेक कार्टून चरित्रों के मुखौटे लगाकर कुछ लोग जन-साधारण का मनोरञ्जन कर रहे हैं। कहीं पर लोग निशानेबाजी कर रहे हैं। एक स्थान पर तो फिल्म दिखाई जा रही है। लोग किसी ज्योतिषी के पास बैठकर अपना भविष्य जानने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ लोग अपनी जरूरत के पशुओं का मोल भाव कर रहे हैं। खाने-पीने की दुकानों पर तो बहुत ही भीड़ है।
कुल मिलाकर सर्वत्र आनन्द मनाते हुए लोग दिखाई दे रहे हैं। प्रकृति के सौन्दर्य को इस पृथ्वी पर निहारते ही बनता है। वन-उपवन में खिले हुए फूल अपनी और बरबस ही आकर्षित करते हैं। पशु-पक्षियों को देखो, तो उनसे नजर नहीं हटती। सदा से नदियाँ और समुद्र मनुष्य के मन को हर लेते हैं। पर्वतों की सुन्दरता देखते ही बनती है। लोग इन मनमोहक स्थानों पर जाकर प्रकृति से अपना तादात्म्य स्थापित करते हैं।
प्रातःकालीन और सायंकालीन सूर्य की आभा देखते ही बनती है। चाँद-सितारों से भरे आसमान की तो शान ही निराली होती है। बादलों की बाट जोहते हुए लोग उसकी एक फुहार पर मानो कुर्बान हो जाते हैं। छहों ऋतुओं का आनन्द मनुष्य इसी धरती पर ले सकते हैं। वर्षा ऋतु में चारों ओर बड़े-बड़े पेड़ और इमारतें नहाई हुई सी लगती हैं। वसन्त ऋतु की तो छटा निराली होती है। हरियाली और सुगन्धित बयार सबका मन मोह लेती है।
मनुष्य चाहे अपने इस जीवन से चाहे कितना भी निराश हो, हताश हो, उसका शरीर बीमारियों के कारण साथ न दे रहा हो, यदि ऐसे व्यक्ति से पूछा जाए कि इस संसार को छोड़कर जाना चाहते हो, तो वह एकदम मना कर देगा। इसका कारण है कि दुनिया की खूबसूरती को कोई भी नहीं छोड़ना चाहता। संसार का आकर्षण उसे इतना बाँध लेता है कि वह इसे छोड़कर जाने की सोच भी नहीं सकता।
मोह-माया के झूठे बन्धनों में मनुष्य इतना जकड़ा हुआ है कि अपने इन भौतिक रिश्तों से दूर जाने की कल्पना करना उसके लिए बहुत कठिन होता है। चाहे वह अपने बन्धु-बान्धवों से कितना भी पीड़ित किया जाता हो, फिर भी वह उनसे वियोग के विषय में सोच ही नहीं सकता। इसी आशा पर वह जीवित रहना चाहता है कि कभी तो सब ठीक हो जाएगा। वह उनके साथ पहले की तरह रह सकेगा।
यह सृष्टि युगों-युगों से चली आ रही है और पता नहीं कब तक चलेगी। इस बात को यह मनुष्य समझना ही नहीं चाहता कि उसका जीवन पानी के बुलबुले की तरह है। वह उस तारे की तरह इस धरा पर रात को उदित होकर चमकता है, जो प्रातः होते ही छिप जाता है। यानी उसका अस्तित्व ही नहीं रह जाता। कोई उसके बारे में जान ही पाता। मनुष्य जब अपने अनुभव से ज्ञान का कोश बन जाता है, तब तक उसके विदा होने का समय आ जाता है।
दुनिया के ऐसे वर्णनातीत मेले में हर किसी का मन रम जाता है। इसे छोड़कर जाने का किसी का भी मनुष्य का मन नहीं करता। परन्तु इस सृष्टि के नियम बहुत ही कठोर हैं। दुनिया के इस मेले को इन्सान को आखिर छोड़कर जाना ही पड़ता है। यह मेला केवल उसी व्यक्ति के लिए ही समाप्त हो जाता है, जो इस दुनिया से विदा लेकर परलोक की यात्रा के लिए प्रस्थान कर जाता है।
मनुष्य अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार जितनी आयु लेकर इस संसार में आता है, उसे भोगकर इस संसार से उसे जाना ही पड़ता है। यह संसार रूपी मेला ऐसे ही चलता रहता है। किसी के यहाँ से विदा हो जाने के उपरान्त कुछ भी नहीं बदलता। सब कुछ यथावत चलता रहता है। वैसे ही यहाँ मेला लगा रहता है, उसमें भाग लेने वाले लोगों की भीड़ भी वैसी ही बनी रहती है।
चन्द्र प्रभा सूद