प्रैशर अथवा तनाव
प्रैशर अथवा दबाव या तनावआधुनिक भौतिक युग की देन है। आज सभी लोग भागमभाग की जिन्दगी जी रहे हैं। दूसरों की देखादेखी हर व्यक्ति अपनी सुख-सुविधा के साधन अधिक-से-अधिक जुटाना चाहता है। उसे उन सबके लिए बहुत सारे पैसों की आवश्यकता होती है। इस धन को कमाने के लिए दिन-रात एक करता हुआ वह कोल्हू के बैल की तरह जुता रहता है।
बच्चे, युवा, बड़े-बुजुर्ग प्रायः सभी लोग किसी-न-किसी दबाव में रहते हैं। बच्चों के सिर पर पढ़ाई का और फिर कैरियर बनाने का दबाव रहता है। समय की माँग के कारण माता-पिता उनके परीक्षा परिणाम में अच्छे अंक लाने के लिए उन पर दबाव बनाए रहते हैं। यदि कहीं कमी रह जाए, तो उनका भविष्य प्रभावित हो जाता है। यही कारण है कि बच्चों का बचपन मानो आज कहीं खो सा गया है।
युवाओं के समक्ष अपने भावी जीवन और अच्छी नौकरी मिलने का दबाव होता है। दिनभर इतना दबाव रहता है कि उनके कार्यक्षेत्र में आने-जाने का कोई समय निश्चित नहीं रहता। इसी कारण उनको अपने पारिवारिक, सामाजिक दायित्वों को पूर्ण करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनके पास समय का प्रायः अभाव-सा रहता है। जिसके कारण उनकी सोशल लाइफ सिमटती जा रही है और वे अलग-थलग होते जा रहे हैं।
अपने दायित्वों को निपटाने और रिटायरमेंट के पश्चात भी बड़े-बुजुर्ग आज के बदलते माहौल के चलते दबाव में रहते हैं। नौकरी के लिए बच्चों के बाहर चले जाने के कारण उनके खानपान, शरीरिक स्वास्थ्य, देखभाल, सुरक्षा, अकेलेपन आदि की समस्या के कारण उन पर मानसिक दबाव बना रहता है।
कच्ची दाल को पकाने के लिए जब हम प्रैशर कुक्कर में डालकर गैस पर रखते हैं, तो प्रैशर से वह पक जाती है। तब वह खाने लायक हो जाती है और हमें पुष्ट करती है।
यह दबाव परिवर्तन लाता है। वह परिवर्तन कोई अनुभव कर पाता है और किसी को वह महसूस नहीं होता। सबमें इसे अनुभव करने की क्षमता अलग-अलग होती है। इस दबाव से एनर्जी या शक्ति के कारण शारीरिक अथवा मानसिक बदलाव होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उसकी गुणवत्ता यानी क्वालिटी और क्वांटिटी पर निर्भर करता है।
इस दबाव को सहन करने की क्षमता भी सबकी अलग-अलग होती है। कुछ लोग इसे किसी भी तरह सहन कर लेते हैं। वे अपने दुखों और परेशानियों से स्वयं को बचाकर निकाल लेते हैं। डटकर उनका सामना करते हुए विजयी हो जाते हैं।
इसके विपरीत कुछ लोग इस दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पाते। वे लोग अपने दुखों और परेशानियों से घबरा जाते हैं और कायरतापूर्ण मार्ग अपना लेते हैं। यानी आत्महत्या कर लेते हैं।
इन लोगों के विषय में हम प्रतिदिन समाचार पत्रों, टी वी व सोशल मीडिया पर पढ़ते व सुनते हैं। इनमें बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ओलावृष्टि आदि के कारण फसल के नष्ट हो जाने पर किसान हो सकते हैं। खराब परीक्षा परिणाम डर से घबराए छात्र हो सकते हैं। व्यापार में हानि अथवा अन्य कारणों से आर्थिक स्थिति के बिगड़ने का बोझ न सहने वाला कोई भी हो सकता है। कुछ लोग अपनी शारीरिक दुरावस्था से घबराकर भी इस मार्ग को अपना लेते हैं।
कहने का तात्पर्य है कि पारिवारिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक अथवा राजनैतिक किसी भी तरह के दबाव को न झेल पाने के कारण नेता, अभिनेता, न्याय व्यवस्था का रक्षक या सामान्य जन कोई भी इस गलत मार्ग को अपनाने वाला हो सकता है।
आजकल मनुष्य हमेशा ही तनाव में रहता है। उसकी भलाई के लिए कही गई किसी भी बात पर वह अनावश्यक ही भड़क उठता है। वह जाने-अनजाने असहनशील बनता जा रहा है। इस कारण उसका शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। यह दबाव या तनाव बहुत से रोगों को निमन्त्रण देता है। इसीलिए छोटी आयु से ही बच्चे दवाइयों पर निर्भर रहने लगे हैं।
अनेक बुराइयों की जड़ इस तनाव को अपने सिर पर हावी नहीं होने देना चाहिए। अपने को यथासम्भव शान्त रखने का प्रयास करना चाहिए। दिन में थोड़ा समय निकालकर परिवार के साथ चर्चा अवश्य करनी चाहिए। अवकाश का दिन बच्चों से मस्ती करनी चाहिए। योग का आश्रय लिया जा सकता है। मेडिटेशन या ध्यान लगाया जा सकता है। इससे दबाव या प्रैशर दूर होता है।
चन्द्र प्रभा सूद