किराए का शरीर
हमें यह शरीर कुछ सीमित समय के लिए मानो ईश्वर की और से किराए पर दिया गया है। इसका यह अर्थ हुआ कि यह शरीर हमेशा के लिए जीव को नहीं मिला है। यदि ऐसा होता तो सृष्टि के आदी से अब तक वही शरीर जीव को मिला रहता, पर ऐसा नहीं है। थोड़े-थोड़े समय पश्चात जीव को मिला हुआ शरीर बदल जाता है, जैसे किराए पर रहने वाले किराएदार को सीमित समय के पश्चात अपना मकान बदलना पड़ता है। अमेरिका में रहने वाली श्रीमती मृदुला कीर्ति द्वारा भेजी गई निम्न कविता बहुत ही मर्मस्पर्शी है-
रहता हूँ किराए की काया में
अपनी साँसों को बेचकर
किराया चुकाता हूँ इसका
मेरी औकात मिट्टी जितनी
बात मैं महल मीनारों की कर जाता हूँ
जल जाएगी मेरी यह काया एक दिन
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूँ
मुझे पता है मैं खुद के सहारे
श्मशान तक भी न जा सकूँगा
इसलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ।
इस कविता के अनुसार मनुष्य का यह शरीर किराए के मकान की तरह है, जिसमें वह रहता है। अपनी साँसों को बेचकर मनुष्य अपने इस घर का किराया चुकता है। उसकी औकात मिट्टी जितनी है यानी उसे एक समय के पश्चात मिट्टी में मिल जाना होता है। वह बड़ी-बड़ी बातें करता है, अपनी खूबसूरती पर घमण्ड करता है। जबकि वह खुद अपना सहारा नहीं बन सकता। उसे मृत्यु के उपरान्त श्मशान तक पहुँचने के लिए चार कन्धों की आवश्यकता होती है। इसलिए उसे अपने जीवन काल में ही बहुत से लोगों से मित्रता कर लेनी चाहिए।
किराए का मकान तब तक मनुष्य के पास रह सकता है जब तक मकान मालिक की इच्छा होती है, उसके बाद नहीं। मकान मालिक जब चाहे अपना मकान खाली करवा सकता है। जब मनुष्य किराए का मकान लेता है तो मकान मालिक कुछ शर्तें रखता है। जैसे मकान का किराया समय पर देना होगा। मकान में टूट-फूट नही होनी चाहिए। यानी माकन को कोई हानि नहीं पहुँचाई जएगी। अनुबन्ध करने के पश्चात भी मकान मालिक जब चाहे मकान को खाली करवा सकता है।
परमपिता परमात्मा ने भी जब यह शरीर दिया था, तो उसने भी हम मनुष्यों के साथ एक अनुबन्ध किया था। मनुष्य ने जन्म लेने पूर्व माता के गर्भ के अन्धकार से घबराकर कहा था कि धरती पर जाने के बाद वह उसे भूलेगा नही, बल्कि आयु पर्यन्त उसकी पूजा-आराधना करेगा। यही दोनों के बीच अनुबंध हुआ था। यानी इस शरीर के किराए के रूप में वह अपनी हर साँस में ईश्वर का भजन -सिमरण करेगा। इसके साथ ही यह भी कहा था कि बुरे विचार और दुर्भावनाएँ नहीं फैलाएगा। इसके साथ अन्य शर्त यह थी कि जब वह मालिक चाहेगा मनुष्य को यह शरीर छोड़कर दुनिया से विदा लेनी होगी। यानी उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही जीवन और मृत्यु का उपहार जीव को मिलता है। उसके लिए वह कोई आनाकानी नहीं कर सकता। उसे अपना सब कुछ समेटने के लिए परमपिता परमात्मा उसे पलभर की मोहलत भी नहीं देता।
परमात्मा की जब इच्छा होती है वह अपने अंश, इस आत्मा को वापिस बुला लेता है। मतलब यह है कि यह मनुष्य जीवन जीव को बहुत सीमित समय के लिए मिलता है। इसे व्यर्थ ही लड़ाई -झगड़ा करके या दुर्भावना रखकर नष्ट नहीं करना चाहिए, बल्कि प्रभु के नाम का स्मरण करते हुए व्यतीत करना चाहिए। तभी मनुष्य इस किराए के मकान के लिए किए गए अनुबन्ध का सही मायने में पालन कर पाता है। अन्त समय जब इस किराए के मकान को खाली करने का समय आए, तो मन में सन्तोष की भावना रहनी चाहिए कि हमने इसे यथावत मकान मालिक को सौंप दिया है। हमने एक अच्छे और समझदार किराएदार का फर्ज निभाया है। उस प्रभु को भी हमसे शिकायत करने का कोई अवसर नहीं मिलने पाए।
चन्द्र प्रभा सूद