जीवन का अनुभव
मनुष्य ज्यों ज्यों आयु में वृद्ध होता जाता है, त्यों त्यों उसके अनुभव में वृद्धि होती रहती है। उस समय वह अपनी आने वाली पीढ़ी को दिशा-निर्देश देने का कार्य कर सकता है। उसके अनुभवों से जो लोग लाभ उठा लेते हैं, वे दुनिया में सफल हो जाते हैं। जो लोग उनके अनुभवों से कुछ सीखने के स्थान पर उनका उपहास करते हैं, वे समय बीतने पर उन्हें याद करते हुए पश्चाताप करते हैं।
सयाने कहते हैं कि अपनी आँखों देखी और कानों सुनी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। मनुष्य को कोई भी निर्णय लेने में सावधानी बरतनी चाहिए। अपने निर्णय में जल्दबाजी करने वालों को बाद में बहुत पछतावा करना पड़ता है। मनुष्य की आँखें जो कुछ देखती हैं और कान जो कुछ सुनते हैं, वह सदा सच नहीं होता यानी वह प्रायः पूरा सच नहीं होता। उसमें गलती की गुँजाइश रहती है।
अधिकतर मनुष्य आधा सच देखकर या सुनकर उसे पूरा सच मानने की गलती कर बैठता है। उसी के अनुसार वह व्यक्ति विशेष के प्रति अपनी धारणा बना लेता है। जब उसका सामना वास्तविकता से होता है, तब उसे शर्मिन्दा होना पड़ता है। इसीलिए मनीषी समझाते हैं कि जब तक किसी व्यक्ति के विषय में पूरी जानकारी न हो, तब तक मौन रह जाना ही उचित होता है। पहले गहरी छानबीन करनी चाहिए तभी कोई धारण बनानी चाहिए।
मनुष्य का अनुभव कहता है कि यदि इन्सान स्वार्थ को अपनी आदत बना लेता है, तो वह जीत कर भी हार जाता है। मनुष्य को हमेशा ही अपने अनुभवों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। कभी-कभी जीवन उसे धोखा दे सकता है या मनुष्य पर चाल चल सकता है। इसलिए स्थितियों से कभी अधिक परेशान या दुखी नहीं होना चाहिए, बस अपने अनुभव को एक सबक के रूप में समझना चाहिए। मनुष्य को अनुभव किसी भी पाठ्यपुस्तक से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
मनुष्य को सदा याद रखना चाहिए कि जब वह भगवान पर सब कुछ छोड़ देता है, तब वह हमेशा उसके लिए सर्वोत्तम का चयन करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी कार्य मनुष्य करता है, उसका सारा श्रेय स्वयं न लेकर ईश्वर को देता है, तो उसके मन में कर्त्तापन का अहंकार नहीं आ पाता। ईश्वर तो सदा मनुष्य के लिए शुभ ही करता है। उसे उत्तम-उत्तम वस्तुएँ प्रदान करता है।
अनुभव यह समझाता है कि जब मनुष्य दूसरों की भलाई के लिए सोचता है, तब उसका हित स्वयं ही हो जाता है। उस समय अच्छाई स्वाभाविक रूप से उसके साथ भी होती रहती हैं। यानी उसका साथ देने वाले कई हाथ आगे बढ़कर आ जाते हैं। ऐसा मनुष्य स्वयं को कभी अकेला नहीं पाता। दूसरों का भला करते करते मनुष्य को परोपकार के कार्य करने की आदत-सी बन जाती है।
अनुभवी बड़ों लोगों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका या स्थान देना चाहिए। यदि मनुष्य बड़ों का आदर-सम्मान करेगा, तो वह कभी भी खाली हाथ नही लौट सकता। उसे सदा ही कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य मिलता है। इन अनुभवी लोगों के अनुभव एवं मनुष्य की दृष्टि का जब ज्ञान तथा विवेक के साथ सामञ्जस्य स्थापित हो जाता है, तब यही मानव जीवन सार्थक कहलाता है।
बड़े-बुजुर्गों के पास दुनियावी ज्ञान या अनुभव बहुत होता है। उन्होनें दुनिया में रहते हुए अनेक उतार-चढ़ाव देखे होते हैं। अपेक्षाकृत अधिक लोगों से सम्पर्क साधा होता है। इसलिए उनके पास अनुभवों का खजाना होता है। वे चाहते हैं कि बच्चे या युवा पीढ़ी उनके उस अनुभव का भरपूर लाभ उठाए। वे ऐसी कोई भी गलती न करें, जिससे उन्हें अपने जीवन में कभी पछताना पड़ जाए।
जीवन का अनुभव हर व्यक्ति प्राप्त करता रहता है। यह अनुभव किसी एक दिन में नहीं मिलता। इसकी एक प्रक्रिया होती है। हर आयु में मनुष्य कुछ न कुछ अनुभव एकत्र करता है। परन्तु एक आयु के पश्चात मनुष्य के पास अनुभवों का खजाना हो जाता है। जैसे धन-वैभव का बंटवारा बच्चों में किया जाता है, उस प्रकार इसे नहीं बाँटा जाता। यह ज्ञान केवल व्यक्ति विशेष के पास ही बैठकर ही लिया जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद