सब्र कर ले ऐ उदासी कब्र तेरे तैयार पडे है एक दिन वहा तक जाना है सबको क्यो किसी को परेशान करे करो न कुछ भी ऐसा यहा पर की तन अन्तिम यात्रा के लिए इन्तजार करे गलत कुछ भी नही है यह गलतफहमी है लोगो गलत तो बस अन्धकार करे सही रहेता है उस दीपक की तरह जो जहां जाये रोशनी करे गलत सही की जो न पहचान करे वह खुद को न इन्सान कहे सृष्टि ने बनाये जो संसार मे वह सब जायेज है गीता पुराण कहे स्वार्थ मे जो करे काम वह है बस इन्सान सार्थक जो कार्य वह है प्रगतिक संसार गलत सही तो अन्तर आत्मा की है पुकार जिसमें को तर्क है बेकार क्योंकि तर्क है तो फर्क नही जान ले ऐ संसार