दरो दिवार को घर कहेना छोड दे ऐ उदासी घर तो वह है जहां मोहब्बत की धारा बहती हो एक ही छत के नीचे जिवन गुजार रहे हैं ऐसे लोग जैसे सफर में व्यवहार कर रहे हो झूठे मुस्कानो के बेडीयो मे जकडे हूँ है लोग अब तो किसी को साता के हस रहे है कहते है खुद को दर्द का साथी जो लोग वह धोखे भरी जिवन गुजार रहे है लेना नही किसी को कुछ भी किसी के जीवन से बस कुछ पल साथ गुजार रहे है बाहें फैलाये हुए है राहे हर वक्त पुकार रहे है साथ तेरा तेरे कदमों के सिवा कोई न देगा क्यो किसी के इन्तजार में जिवन गुजार रहे हो कदम खुद ही मंजिल तक चले जायेंगे बस कर्म सुधार लो संस्कार लोग क्या देगे आने वाली पिडी को जो पैसे बचा रहे हो