बजार गरम आदमी नरम अथॅ बिना हर खुशी भरम प्यास बहूत पानी है कम हर खुशी मे शामील है कॅज का गम खचॅ कि खाई इतनी बडी भर न पाता श्रोत कोई होता है हर घर मे गाली गलोच महगाई से चिडचिडा हो गया हर आदमी का सोच आमजन आपने घर मे कैसे दीप जलाएं मिठाई दिपावली मे कैसे अपने घर पर लाए हर बजार है महगाई से गरम अथॅ बिना आम आदमी है नरम