ईश्वर लोगों को पूर्ण जीवन जीने की शक्ति देता है ।
अच्छी खबर यह है कि परमेश्वर मनुष्य को उनके भाग्य को पूरा करने के लिए पालन करने की क्षमता देता है। यीशु ने कहा, “मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5)। जैसा कि मनुष्य उसके वचन के अध्ययन और प्रार्थना के माध्यम से प्रतिदिन मसीह में रहता है, प्रभु उनमें बसता है और उन्हें आज्ञा मानने की शक्ति और सामर्थ देता है। इस प्रकार, मनुष्य ईश्वरीय प्रकृति का एक हिस्सा बन जाता है (2 पतरस 1: 4)।
हम ईश्वर की कल्पना मनुष्य रूप में ही कर सकते हैं, लेकिन हमें उनके चमत्कारों के बजाय गुणों की पूजा करनी चाहिए। वही हमें स्वतंत्र बना सकते हैं।
हम मनुष्य हैं, इसलिए हमें ईश्वर की मनुष्य रूप में ही पूजा करनी होगी। तुम परमात्मा को मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी रूप में देख ही नहीं सकते। हम चाहे बड़े-बड़े व्याख्यान दे डालें, बड़े तर्कवादी हो जाएं और यह भी सिद्ध कर दें कि ईश्वर संबंधी सारी कथाएं झूठी हैं, पर हमें अपनी कुछ साधारण बुद्धि से भी तो काम लेना चाहिए।
हमें साधारण बुद्धि की आवश्यकता है। साधारण बुद्धि बड़ी दुर्लभ है। हम अपनी वर्तमान प्रकृति के अनुसार मर्यादित हैं और भगवान को मनुष्य के रूप में देखने को ही बाध्य हैं। यदि भैसे ईश्वर की पूजा कर पाते, तो वे ईश्वर को एक बड़ा भैंसा जैसा ही समझते। यदि मछली ईश्वर की पूजा करना चाहे, तो वह ईश्वर को एक बड़ी मछली के आकार का समझेगी। इसी प्रकार यदि मनुष्य ईश्वर की पूजा करना चाहता है, तो उसे ईश्वर को मनुष्य-रूप ही मानना पड़ेगा। आप और हम, भैंसा और मछली, मानो भिन्न-भिन्न पात्रों (बर्तनों) के समान हैं। पात्र समुद्र में पानी भरने जाते हैं और मनुष्य की आकृति के अनुसार मनुष्य में, भैंसे के अनुसार भैंसे में, मछली के अनुसार मछली में पानी भर जाता है। प्रत्येक पात्र में पानी के सिवाय और कोई वस्तु नहीं है। इसी प्रकार उन सभी में जो ईश्वर है, उसके विषय में भी समझो। मनुष्य ईश्वर को मनुष्य के रूप में देखता है। परमेश्वर को तुम इसी प्रकार देख सकते हो। मनुष्य के रूप में ही तुम उसकी उपासना कर सकते हो, क्योंकि इसके सिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं है।
जहां ऐसे उपास्य मानव ईश्वर हैं, वे धन्य हैं। ईसाइयों को ईसा मसीह के प्रति दृढ़ आस्था रखनी चाहिए। जैसे ईसा मसीह ईश्वर थे, वैसे ही बुद्ध भी ईश्वर हैं और भी सैकड़ों होंगे। ईश्वर को सीमाबद्ध मत करो।
ईश्वर की पूजा क्यों नहीं हो सकती, क्योंकि ईश्वर तो सृष्टि में सर्वव्यापी है। उनके मानव रूप की ही हम उपासना कर सकते हैं। ईसा मसीह के नाम पर ईश्वर मानवजाति का उपकार करने मनुष्य बनकर आता है। भगवान श्रीकृष्ण का वाक्य है कि जब-जब धर्म का ह्रास और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं मानवजाति का उद्धार करने आता हूं। ईश्वर के अवतारों की ही पूजा हो सकती है। इनके जन्मदिवस, महासमाधि दिवस को हमें पूजनीय मानना चाहिए। ईसा की पूजा में, मैं उनकी पूजा ठीक उसी तरह करूंगा, जैसी कि वे स्वयं ईश्वर की पूजा करना चाहते थे। उनके जन्मदिवस पर मैं दावत उड़ाने के बदले प्रार्थना और उपासना करूंगा।
Ecclesiastes:3:12
मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं;
I know that there is no good in them, but for a man to rejoice, and to do good in his life.
जब हम इन अवतारों का, महान विभूतियों का चिंतन करते हैं, तब ये हमारी आत्मा के भीतर प्रकट होते हैं और हमें अपने समान बना देते हैं। हमारी संपूर्ण प्रकृति बदलकर उनके समान हो जाती है। पर तुम ईसा मसीह या बुद्ध की पूजा उनके चमत्कारों के कारण मत करना। ईसा मसीह की महान शक्ति उनके चमत्कारों में नहीं है। मैंने कुछ मनुष्यों को भूत, वर्तमान और भविष्य की बातें बताते देखा है। मैंने उन्हें इच्छाशक्ति से भयानक रोगों में आराम दिलाते देखा है। इनसे अलग एक दूसरी शक्ति है, जो ईसा मसीह की आध्यात्मिक शक्ति है। वह जीवित रहेगी और सदा रहती आई है। वह है सर्वशक्तिशाली, सबको अपनाने वाला प्रेम। वैसे ही, उन्होंने सत्य के जिन-जिन शब्दों का उपदेश दिया, वे भी सदा जीवित रहेंगे। उनका एक नजर से मनुष्यों को निरोग कर देना भूल भी सकता है, मगर उनकी यह उक्ति कि जिनका अंत:करण पवित्र है, वे धन्य हैं कभी भुलाई नहीं जा सकती। उनकी शक्ति पवित्रता की शक्ति थी।
अत: हमें उनकी प्रार्थना करते समय यह सोचना होगा कि हम उनकी चमत्कार दिखलाने की शक्ति नहीं चाहते, वरन आत्मा की उन अद्भुत शक्तियों की आकांक्षा करते हैं, जो मनुष्य को स्वतंत्र बना देती हैं। उसे समग्र प्रकृति पर अधिकार प्राप्त करा देती है और उसे दासत्व की श्रृंखला से छुड़ाकर परमेश्वर के दर्शन करा देती है।