हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।
To every thing there is a season, and a time to every purpose under the heaven:
अकसर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा, “काश, मैंने ये पहले ही कर दिया होता।” या कोई काम कर लेने के बाद वे पछताते हुए कहते हैं,
“काश, मैं थोड़ा रुक जाता।” ऐसी बातों से पता चलता है कि असिद्ध इंसानों को कई कामों के लिए सही समय चुनने में कितनी दिक्कत होती है। और इस दिक्कत की वज़ह से वे कभी-कभी गलत फैसले कर बैठते हैं, जिससे रिश्ते टूट जाते हैं और वे मायूस और बेबस हो जाते हैं। और इसका सबसे बुरा अंजाम यह है कि कुछ लोगों का यहोवा परमेश्वर और उसके संगठन पर विश्वास कमज़ोर हो जाता है।
‘हर एक बात का एक समय होता है’
“हर एक बात का एक अवसर [समय] और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।”—सभोपदेशक ३:१.
असिद्ध इंसानों को क्या करने में दिक्कत होती है और इसकी वज़ह से कभी-कभी क्या-क्या हुआ है?
अकसर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा, “काश, मैंने ये पहले ही कर दिया होता।” या कोई काम कर लेने के बाद वे पछताते हुए कहते हैं, “काश, मैं थोड़ा रुक जाता।” ऐसी बातों से पता चलता है कि असिद्ध इंसानों को कई कामों के लिए सही समय चुनने में कितनी दिक्कत होती है। और इस दिक्कत की वज़ह से वे कभी-कभी गलत फैसले कर बैठते हैं, जिससे रिश्ते टूट जाते हैं और वे मायूस और बेबस हो जाते हैं। और इसका सबसे बुरा अंजाम यह है कि कुछ लोगों का यहोवा परमेश्वर और उसके संगठन पर विश्वास कमज़ोर हो जाता है।
यहोवा के ठहराए हुए समय को कबूल करना क्यों अक्लमंदी की बात है? बाइबल की भविष्यवाणियों के पूरा होने के बारे में हमें कौन-सा सही नज़रिया रखना चाहिए?
इंसानों की इस दिक्कत की वज़ह यह है कि उनके पास वैसी बुद्धि और अंदरूनी समझ नहीं है जैसी यहोवा के पास है। अगर यहोवा चाहे तो, वह पहले से ही जान सकता है कि उसके हर काम का अंजाम क्या होगा। वह तो “अन्त की बात आदि से” जान सकता है। (यशायाह ४६:१०) और इसीलिए वह सही-सही जानता है कि किसी काम को पूरा करने का सबसे बेहतरीन समय कौन-सा है। मगर हम ठहरे असिद्ध इंसान, जिन्हें सही समय का पता लगाने का कोई अंदाज़ा नहीं है। तो क्या यह अक्लमंदी नहीं होगी कि इस बारे में हम खुद पर भरोसा करने के बजाय यहोवा के ठहराए हुए समय को कबूल करें?
जब बाइबल की कुछ भविष्यवाणियों के पूरा होने की बात आती है, तो प्रौढ़ मसीही सब्र से काम लेते हैं और यहोवा के ठहराए हुए समय का इंतज़ार करते हैं। वे वफादारी से यहोवा की सेवा में लगे रहते हैं, और विलापगीत ३:२६ (न्यू हिंदी बाइबल) में लिखी बात को हमेशा ध्यान में रखते हैं: “यह मनुष्य के हित में है, कि वह शांति से प्रभु के उद्धार की प्रतीक्षा करे।” (हबक्कूक ३:१६ से तुलना कीजिए।) साथ ही, उन्हें पूरा विश्वास है कि जो न्यायदंड यहोवा ने सुनाया है, “चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी . . . वह निश्चय पूरा होगा और उस में देर न होगी।”—
जो हमें सही “समय पर . . . [आध्यात्मिक] भोजन” देता है। (मत्ती २४:४५) सो, अगर कुछ बातें अभी तक पूरी तरह समझायी नहीं गयी हों, तो हमें बहुत ज़्यादा चिंता करने या उत्तेजित होने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, हम विश्वास रख सकते हैं कि अगर हम सब्र से काम लें और यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह अपने विश्वासयोग्य दास के द्वारा हमें ‘सही समय’ पर जिसकी ज़रूरत होगी, वह ज़रूर देगा।
रोने का समय, और हंसने का भी समय” होता है। लेकिन रोना किसे पसंद है? किसी को भी नहीं। (सभोपदेशक ३:४) मगर दुःख की बात है कि आज दुनिया हमें बस आँसुओं के अलावा कुछ और नहीं देती। अखबार पढ़िए, टीवी पर देखिए, बस बुरी खबरें ही सुनने को मिलती हैं। आज, स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे दूसरे बच्चों को गोलियों से भून देते हैं, माता-पिता अपने बच्चों के साथ बुरा सलूक करते हैं, आतंकवादी बेकसूर लोगों को अपाहिज बना देते हैं ।
या उनकी जान ले लेते हैं, और जिन्हें लोग प्राकृतिक विपत्तियाँ कहते हैं, वे भी लोगों के जान-माल का नुकसान करती हैं। ये सारी खबरें सुनकर कलेजा काँप उठता है।
दाने-दाने को तड़प रहे और सूखकर काँटा हो चुके बच्चों को देखकर और दर-ब-दर की ठोकरें खाते फिर रहे बेघर शरणार्थियों को टीवी पर देखकर दिल दहल जाता है। साथ ही, आज ऐसी नई-नई बातें सुनने को मिलती हैं जिनके बारे में पहले कभी नहीं सुना गया था,
जैसे कि पूरी-की-पूरी जाति का जनसंहार, एड्स, युद्ध में दुश्मन को मारने के लिए कीटाणुओं का इस्तेमाल, एल नीनो तूफान। ये सब अब हमारे दिल में एक अजीब-सी दहशत पैदा करते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज की दुनिया में हर तरफ मुसीबतें और दुःख-ही-दुःख है। और लोगों की इस दुर्दशा पर परदा डालने के लिए मनोरंजन जगत लगातार छिछोरे, बेमतलब के, मार-धाड़वाले और अकसर अश्लील कार्यक्रम पेश करता रहता है, ताकि लोग दूसरों की दुःख-तकलीफों की तरफ बिलकुल ध्यान न दें।
लेकिन बेवकूफ और बचकानी हरकतोंवाले ऐसे कार्यक्रम देखकर लोग पलभर के लिए हँस ज़रूर लेते हैं, मगर वो सच्ची खुशी नहीं है। सच्ची खुशी परमेश्वर की आत्मा का एक फल है जो शैतान की दुनिया बिलकुल भी नहीं दे सकती।—गलतियों ५:२२, २३; इफिसियों ५:३, ४.
जिस पीढ़ी में इस पृथ्वी पर जलप्रलय आया था, उस पीढ़ी के लोग वक्त की नज़ाकत को नहीं समझे। वे अपने रोज़मर्रा के काम में मशरूफ थे और “मनुष्यों की बुराई [पर, जो] पृथ्वी पर बढ़ गई” थी, बिलकुल आँसू न बहाए। (उत्पत्ति ६:५) “पृथ्वी . . . उपद्रव से भर गई थी,” और लोग थे कि बिलकुल बेफिक्र हो गए थे। (उत्पत्ति ६:११)
यह कितने अफसोस की बात थी! यीशु मसीह ने उस हालत का ज़िक्र किया और भविष्यवाणी की कि हमारे दिनों में भी लोगों की मनोवृत्ति ऐसी ही होगी। उसने आगाह किया:
“जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।”—मत्ती २४:३८, ३९.