नमस्कारम्
जैसा कि सामान्यतः सुनने-पढने में आता है कि भारत की पराजय और अवनति के विभिन्न कारणों व चरणों में एक मूल कारण रहा है हमारा टुकडों में सोचना व रहना। जब मुस्लिम आक्रांताओं ने आक्रमण किया,जब अंग्रेजों ने यहाँ अपना वर्चस्व स्थापित किया एक बात समान थी वो ये कि निवर्तमान समाज ने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया। कारण वही कि हम व्यापारी हैं हम क्या करें क्या कर सकते हैं, हम किसान हैं क्या करें क्या कर सकते हैं हम राजा को कर देते हैं हमने राजा को चुना है अब वो करे जो करना हो सेना लडे हमने कर दिया है राशन दिया है आदि आदि। बहाने हजार बनाये पर कोई उस राजा के साथ उस सेना के साथ मिलकर लडने के लिए खडा नहीं हुआ। परिणाम सबके सामने हैं। और आज भी शदियाँ बीत गई पर हमने अपनी सोच नहीं बदली। हम आज भी वहीं खडे हैं जहाँ मुहम्मद बिन कासिम के समय पर खडे थे। वो निरन्तर हमें हमारी मान-मर्यादाओं को कुचलते रहे और कुचल रहे हैं लेकिन हम फिर भी अपनी लडाई आप नहीं लड रहे बस सरकारों को टैक्स देकर या वोट देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं । तो अब परिणाम क्या होंगे उसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
अब बात आती है हम करना भी चाहें तो क्या कर सकते हैं? हम साधारण लोग हैं घर गृहस्थी है हमारी, पैसा ले लो ये ले लो वो ले लो बगैरह-बगैरह।
एक साधारण व्यक्ति क्या कर सकता है यह जानने से पहले जरूरी है कि उसके करने से क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं और न करने से क्या-क्या नहीं हो सकता।
जैसा कि आप जानते हैं हम लोकतान्त्रिक समाज में रह रहे हैं लोकतन्त्र का अर्थ ही है लोगों की सरकार तो स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जब सरकार लोगों की है और लोग चुप हैं तो काम कौन करेगा और कैसे करेगा? उनके हित-अहित की कौन सोचेगा? वोट देना व कर देना आधारिक काम है सबकुछ नहीं । कहावत है कि "बच्चा रोता नहीं तब तक माँ भी दूध नहीं पिलाती" और आप लोकतान्त्रिक समाज में रह रहे हैं जहाँ कोई भी जबाबदेह नहीं है । हर कार्य के लिए आप जबाबदेह बने या जो हो रहा है होने दें।
तो अब....!
हम क्या कर सकते हैं?
हर व्यक्ति को बन्दूक उठाने की जरूरत नहीं है । आप स्वंय जागरूक रहते हुये अपने आस पास के लोगों को जागृत कर सकते हैं।
देश में हो रही अप्रिय घटनाओं पर रोष प्रकट करते हुये घर से गली के मोड तक कैन्डिल मार्च/पोस्टर उठा कर दो चार लोगों के साथ ही सही निकाल सकते हैं ।
अपने विधायक/सांसद को नियमित पत्र लिख सकते हैं ।
प्रधानमन्त्री कार्यालय को पत्र लिख सकते हैं ।
और जहाँ भी कुछ नियम के विरूद्ध हो रहा है या हमारी संस्कृति के विरूद्ध है तो सम्बन्धित विभाग मन्त्रालय को पत्र लिख सकते हैं ।
और सबसे महत्वपूर्ण बात आप अपने आप को भारतीयता में रंगे धीरे-धीरे यदि आप ही गैरों सा वर्ताव करते हैं तो आपकी रक्षा कोई क्यों करे?
इसलिए 'अपनी भाषा अपनी संस्कृति अपना देश' पर जोर दें और सविनय अवज्ञा के साथ स्वदेशी के रक्षक बने।
जयतु भारतम् जयतु भारतम्
अजीत सिंहः
ईमेल- मैंअजीत@डाटामेल.भारत
२७ माघ १९४०