राजनीतिविशेष
2014 के बाद हुए 27 लोकसभा उपचुनाव में एनडीए एक भी नई सीट जीत नहीं पाया
15 राज्यों में लोकसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इन 27 में से 16 सीटों पर राजग का क़ब्ज़ा था लेकिन उपचुनावों के बाद इसमें से 9 सीटों पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों को हार मिली है, जबकि सात सीट बचाए रखने में वो कामयाब रहे हैं.
हाल ही में चार लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए सुखद नहीं रहे. भाजपा और उसके सहयोगी दल सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहे, जबकि पहले इन चारों सीटों पर उनका कब्जा था, वैसे अगर हम 2014 से हुए लोकसभा उपचुनावों के नतीजे देखें तो भाजपा की हालत बेहतर नजर नहीं आती है.
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 15 राज्यों में लोकसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इन 27 में से 16 सीटों पर राजग का कब्जा था. लेकिन उपचुनावों के बाद इसमें से 9 सीटों पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों को हार मिली है, जबकि सात सीट बचाए रखने में वो कामयाब रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस दौरान एनडीए ने अपनी सांसद संख्या में एक का भी इजाफा नहीं किया है.
मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली थी तो उस समय एनडीए के कुल 336 सांसद थे. भाजपा ने अकेले 282 सीटों पर जीत हासिल की थी. आज यह संख्या 271 पर आ गई है. अगर हम दो नामित सांसदों को जोड़ ले तो यह संख्या 273 होती है. जबकि एनडीए के कुल 327 सांसद रह गए हैं.
वहीं अगर हम विपक्ष की बात करें तो उसने उपचुनावों में अपनी सीटें बचाए रखने में तो सफलता हासिल ही की है, भाजपा और उसके सहयोगियों से इन चार सालों में हुए उपचुनाव के दौरान 9 सीटें जीत भी ली है. इसमें से आठ सीटें भाजपा की जबकि एक सीट उसके सहयोगी दल की घटी हैं.
विपक्षी दलों में कांग्रेस ने अपनी सांसद संख्या में चार का इजाफा किया है. समाजवादी पार्टी ने 2 सीटें बढ़ाई हैं तो राकांपा, आरएलडी और नेशनल कांफ्रेंस ने एक-एक सीट राजग से छीन ली है.
हालांकि बहुमत अब भी राजग सरकार के पक्ष में है लेकिन फिर भी कई कारणों से ये आंकड़े उनके लिए चिंताजनक हैं. पहली बात, 2014 में चली मोदी लहर शायद नवंबर 2015 में ही थम गई थी जब भाजपा को मध्य प्रदेश के रतलाम लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के हाथों शिकस्त मिली. आंकड़े एकदम साफ हैं, अब तक भाजपा और उसके सहयोगी अपनी नौ सीटें गंवा चुके हैं.
दूसरी बात, जहां भाजपा और उसके सहयोगी दलों को इन चार सालों में हार का सामना करना पड़ा है तो वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को जीत मिलती रही है. 2014 में इन 27 सीटों में सिर्फ 4 उनके पास थी लेकिन अब यह संख्या 13 की है.
तीसरी बात, गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी खेमा इन उपचुनावों के दौरान अपनी सीटें बचाए रखने में कामयाब रहा है. तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल ने उपचुनावों में अपनी सीटें बरकरार रखी हैं. अभी जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं उनके हिसाब से 2019 में ये दल भाजपा के बजाय कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठजोड़ बनाते नजर आ सकते हैं.
इन सबके अलावा 2014 के बाद से ही राज्यों में हुए चुनावों के दौरान भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट आई है. साथ ही लोकसभा की जिन सीटों को वो बचाए रखने में कामयाब भी रही है वहां उनकी जीत का अंतर भी घट गया है.