देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कैलेंडर सुधार समिति को भेजे गए अपने संदेश में लिखा था, ‘हमारे पास वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के तीस पंचांग हैं, जिनमें काल गणना के अलावा और भी कई तरह के अंतर हैं। ये पंचांग हमारे विगत राजनैतिक व सांस्कृतिक इतिहास की सहज देन हैं और आंशिक रूप से विगत राजनैतिक विभाजनों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हमने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, इसलिए यह वांछनीय होगा कि हमारे नागरिक, सामाजिक और अन्य कार्यो में काम आने वाले कैलेंडर में कुछ समानता हो और इस समस्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिया जाना चाहिए।’
कैलेंडर सुधार समिति ने सुझाव दिया था कि वर्ष में 365 दिन तथा लीप वर्ष में 366 दिन होंगे। लीप वर्ष के लिए सुझाव दिया गया कि शक संवत् में 78 जोड़ने पर जो संख्या मिले वह अगर 4 से विभाजित हो जाए तो वह लीप वर्ष होगा। लेकिन, अगर वर्ष 100 का गुणज तो है लेकिन 400 का गुणज नहीं है तो वह लीप वर्ष नहीं माना जाएगा।
राष्ट्रीय परंपरागत 12 भारतीय मास माने गए : चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रवण, भाद्र, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन। समिति ने यह भी संस्तुति की कि वर्ष का प्रारंभ वसंत विषुव के अगले दिन से होना चाहिए। कैलेंडर में चैत्र मास, वर्ष का प्रथम मास होगा। चैत्र से भाद्र तक प्रत्येक मास में 31 दिन और आश्विन से फाल्गुन तक प्रत्येक मास में 30 दिन होंगे। लीप वर्ष में, चैत्र मास में 31 दिन होंगे अन्यथा सामान्य वर्षो में 30 दिन ही रहेंगे। लीप वर्ष में चैत्र मास की प्रथम तिथि 22 मार्च के बजाय 21 मार्च होगी।
समिति ने कहा कि जो उत्सव और अन्य महत्वपूर्ण तिथियां 1400 वर्ष पहले जिन ऋतुओं में मनाई जाती थी, वे 23 दिन पीछे हट चुकी हैं।