14 वर्ष पहले 26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित और भारी हथियारों से लैस दस चरमपंथियों ने मुंबई की दो पाँच सितारा होटलों, एक अस्पताल, रेलवे स्टेशनों और एक यहूदी केंद्र को निशाना बनाकर चार दि
गतांक से आगेकनक गला फाड़कर रो रही थी ,"ददू !यही फर्श के नीचे मेरा पार्थिव शरीर गढ़ा है। मुझे मुक्ति दिला दो ददू मेरे सैफ मेरा इंतजार कर रहे हैं।"ठाकुर साहब की आंखों में अविरल आंसू बह रहे थे जाप न
गतांक से आगे… ठाकुर साहब का आज मन बहुत भारी था कनक की दुःख भरी दास्तां सुनाने के बाद बरबस आंखों से आंसू आये जा रहे थे।आज ठाकुर साहब ने कुल्ला करके नाश्ता भी नहीं किया ।भारी मन
गतांक से आगे.… जिसका डर था वहीं बात बनी ।छोटी मां और कालू मुझे ऐसे ढूंढ रहे थे जैसे खोजी कुत्ते सुराग़ ढूंढते हैं।कालू ने मुझे पहचान लिया था।वो भुखे शेर की तरह
जैसा की हम सभी जानते है की आज की ही तारीख को आतंकवादियों ने मुंबई में विनाशकारी खेल को अंजाम दिया था जिसमे की कई मुंबई वासी मुंबई पुलिसकर्मी और सेना के जवान इस ओपरैशन में शहीद हो गये थे इस बात से यही