बच्चे के सर्वांगीण विकास
बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए माता और पिता दोनों की ही भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। दुर्भाग्य से किसी एक की मृत्यु हो जाने के कारण उनके बच्चे के जीवन पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है।
यदि दुर्भाग्यवश माता और पिता का तलाक हो जाए, तब स्थितियाँ और भी विकट एवं गम्भीर हो जाती हैं। बच्चा माता के पास रहता है, तो उसे पिता की कमी खलती है और यदि वह पिता के पास रहता है, तो माता को याद करके सबसे छिपकर आँसू बहाता है।
ऐसे खण्डित परिवारों के बच्चे प्रायः उद्दण्ड, जिद्दी और चिड़चिड़े हो जाते हैं। वे सदा ही अपने माता-पिता को परेशान करने के लिए अवसर तलाशते रहते हैं। उन्हें दूसरों के सामने अपमानित होता देखकर इन्हें सुकून मिलता है। उनका नकारात्मक रवैया सबके लिए चिन्ता का कारण बन जाता है।
इसके विपरीत माता अथवा पिता में से यदि कोई एक घर पर हावी हो जाता है तो उसका दुष्परिणाम बच्चों पर देखा जा सकता है। जहाँ माता का प्रभुत्व घर पर हो जाता है और वहाँ बच्चों के पिता का मानो अस्तित्व ही नहीं रह जाता। उसकी हर बात अनसुनी की जाती है अथवा उसे बात-बात पर अपमानित किया जाता है। ऐसे में माँ की देखादेखी उस घर में बच्चे भी पिता की अवहेलना करने लग जाते हैं। इसका कारण है कि उनकी सारी आवश्यकताएँ माँ ही पूरी करेगी।
इसी प्रकार जिस भी घर में पिता का दबदबा चलता है और माता का सम्मान नहीं किया जाता, उसकी किसी बात को अहमियत नहीं दी जाती, उस घर में बच्चे भी माता का सम्मान न करके सदा उसका तिरस्कार करते हैं। यहाँ भी वही स्थिति होती है कि पिता ही कर्त्ताधर्त्ता है। वही सब इच्छाएँ पूरी करेगा। इसलिए कामनाओं की पूर्ति का केन्द्र वही बन जाता है। बच्चे उसी के गुण गाते हैं।
ऐसे भी कई घर देखे हैं जहाँ माता अपने युवा बच्चों के साथ मिलकर अपने पति को किसी भी कारण से मारती-पीटती है। उसे हर तरह से प्रताड़ित करती है। अपने अहं को सन्तुष्ट करती है। उस समय अधिकार के नशे में वह वह भूल जाती है कि सभी दिन एक समान नहीं होते हैं।
कुछ समय बीतने पर जब स्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं यानी पिता हावी हो जाता है, तो वह अपने प्रति हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए बच्चों के सहयोग से अपनी पत्नी को मारता-पीटता है। इस तरह अपनी भड़ास निकालता है।
यानी इस तरह हिसाब बराबर कर लिया जाता है। इस तरह यह सत्ता परिवर्तन होता रहता है। ऐसे घरो में बच्चे किसका सम्मान करें माता का अथवा पिता का? यहाँ बच्चों के समझाने का किसी पर कोई असर नहीं होता। उन्हें डाँटकर चुप करा दिया जाता है। माता-पिता जब सारी हदें पार कर लेंगे, तो वहाँ वे बच्चे स्वार्थी और उज्जड ही बनेंगे।
इसलिए अपने घर को अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। न ही घर में सत्ता की जंग छेड़नी चाहिए। माता और पिता दोनों में परस्पर सामञ्जस्य होना चाहिए। यदि उन दोनों में उचित तालमेल होता है, तो बच्चे इस स्थिति का लाभ नहीं उठा सकते। वे माता या पिता किसी एक की अवहेलना करके दूसरे के पक्ष में नहीं बोलते।
बच्चे समझते हैं कि उन्हें कब और किस परिस्थिति में लाभ उठाना चाहिए। वे सदा मौके की तलाश में रहते हैं और मौका मिलते ही अपना मनचाहा कर लेते हैं। माता के सामने पिता की और पिता के सामने माता की बुराई करने लगते हैं। जब किसी एक के साथ होते हैं, तो उसकी प्रशंसा करते हुए दूसरे को नीचा दिखाने का यत्न करते रहते हैं।
इस प्रकार ये मासूम बड़ों के षडयन्त्र का और गलत आदतों का शिकार होते रहते हैं। इनका बचपन मानो कही खो जाता है और ये उस नाजुक अवस्था में ही प्रौढ़ हो जाते हैं। अपने बच्चों को बचाने और उन्हें योग्य इन्सान बनाने के लिए आपसी अहं और महत्त्वाकाँक्षाओ को किनारे करते हुए उनके चहुँमुखी विकास पर ध्यान देना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद