हमारा चुप होना एक दिन
उजाड़ डालेगा इस उपवन को
देख लेना, खत्म कर देगा सबकुछ
हमेशा के लिए!
अपनी आँखों के सामने घट रहे
तमाम दुर्घटनाओं को देखकर भी
जिस तरह चुप्पी साध लेते हैं हम
और खड़े-खड़े तमाशा देखकर
डाल देते हैं स्वयं को
'सभ्य इंसानों' की श्रेणी में
ये मिटा डालेगा एकदिन
इंसानों का अस्तित्व
इस धरा पर से!
अगर मौन रहे हम यूँही
तो प्रेम को पढ़ पाएंगे
बस इतिहासों में!
और फिर आएगा एक ऐसा भी दिन
जब सभी लोगों का
अपना अलग देश होगा
जिसमें हम अकेले करेंगे
आख़िरी सत्य का इंतज़ार!
तो सुनो,
नहीं भूलना चाहिए हमें
कि 'मूक होकर'
हत्यारे को ज़ुर्म करते हुए देखना भी
शामिल होने जैसा है
उस अपराध में!
दीपांकर गुप्ता 'दीप'