बुजुर्गों का सम्मान करें
आज लोगों के मन बहुत संकीर्ण होते जा रहे हैं। उसमें बस मैं और मेरे बच्चे रह सकते हैं और कोई नहीं। उनके घर में सब सदस्यों के लिए जगह होती है यानी सबके लिए अपने-अपने कमरे होते हैं, परन्तु दुर्भाग्यवश उन बजुर्गों को वहाँ पर स्थान नहीं मिल पाता, जिनकी बदौलत ही वे बच्चे इस मुकाम तक पहुँचे होते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि घर में रसोईघर, ड्राईंगरूम, डायनिंग रूम, स्टोर रूम, अपना बेडरूम, गेस्टरूम और बच्चों के लिए भी अलग-अलग बेडरूम होते हैं। सबसे अलग बचा हुआ कमरा बजुर्गों को दे दिया जाता है। जहाँ पर वे किसी को नजर न आएँ ताकि उस घर में रहने वालों की आजादी में खलल न आए।
संयुक्त परिवारों में कोई समस्या नहीं है। वहाँ पर आज भी घर के बुजुर्गों के मान-सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाता है। उनकी कही गई हर बात को घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्य महत्त्व देते हैं। न तो उन्हें किसी तरह का अकेलापन काटने को दौड़ता है और न ही उन्हें अपने भविष्य की चिन्ता सताती है।
बुजुर्गों के लिए यह सारी समस्याएँ तथाकथित पढ़े-लिखे, उच्च पदासीन लोगों के घरों में ही होती हैं। इन घरों में रहने वाले बुजुर्गों को बोझ की तरह मानते हैं। समाज में किरकिरी न हो जाए, इसलिए अपनी नाक ऊँची रखने के लिए इन बुजुर्गों को भी घर के फालतू सामान की तरह किसी एक कोने में रख दिया जाता है। जिनकी जरूरत शायद ही कभी किसी को हो।
ऐसे तथाकथित समझदार बच्चे भूल जाते हैं कि उनके घरों में रहने वाले उनके अपने छोटे बच्चे सब व्यवहार का बारीकी से परीक्षण कर रहे होते हैं। बच्चे चाहे कुछ बोल न पाएँ, परन्तु अपने माता-पिता को अपने दादी-दादा से दुर्व्यवहार करते हुए देखकर उनका कोमल हृदय तार-तार होता है।
उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगता। कभी-कभी उन बच्चों के व्यवहार से वह सब अनायास प्रकट हो जाता है कि सब हैरान रह जाते हैं। ये बच्चे अपनी तरफ से लुक-छुपकर अपने बुजुर्ग दादा-दादी का ध्यान रखने का यत्न करते हैं।
मेरे कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि घर के बच्चे जब अपने माता-पिता को बड़ों के साथ गलत बोलते हुए अथवा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने मे कोताही बरतते हुए देखते हैं, तो वे इस बात को समझ नहीं पाते कि जब वे छोटे बच्चे लापरवाही करते हैं या गलत बोलते हैं या अपने माता-पिता की बात को अनसुना करते हैं तब उन्हें बुरा क्यों लगता है? उन बच्चों के समक्ष जब यही उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है, तभी तो वे यह सब व्यवहार करते हैं।
जिन लोगों के घर इतने बड़े नहीं हैं, वहाँ पर कुछ अधिक ही परेशानी होती है। बड़े- बुजुर्ग यदि अपनी कोई वस्तु घर में इधर-उधर रख दें, तो उनके बच्चों से सहन नहीं होता। वे इस तरह मुँह बनाकर, उस वस्तु को उठाकर परे पटकते हैं मानो वह कोई कचरा हो।
घर के लोग सदा इसी इन्तजार में रहते हैं कि बुड्डे लोग कब इस दुनिया से विदा लें और उनका कमरा खाली हो जाए। वे उसका उपयोग अपनी सुविधा से कर सकें। ऐसे घरों में उन बुजुर्गों पर होने वाले अत्याचार और दुर्व्यवहार किसी का भी दिल दहला देने के लिए बहुत होते हैं।
जिन घरों में अपने बुजुर्गों के साथ अमानवीय व्यवहार होता है, वही बुजुर्ग स्वेच्छा से अथवा अनिच्छा से ओल्डहोम में जाकर रहने के लिए विवश हो जाते हैं। वहाँ पर उन जैसे साथी मिल जाते हैं, जहाँ वे कम-से-कम अपने सुख-दुख साझा कर सकते हैं।
अपना भविष्य अथवा अपनी वृद्धावस्था के कठिन समय को सुरक्षित रखने के लिए अपने बुजुर्ग माता-पिता की मन से देखभाल करनी चाहिए। सदा उनके खान-पान स्वास्थ्य आदि का ध्यान रखते हुए बच्चों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद