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Neetesh Kumar shakya

30 सितम्बर 2021

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टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
सुरख़ाब बैठे पानी में हैं मिल के चार पाँच

मुँह खोले हैं ये ज़ख़्म जो बिस्मिल के चार पाँच
फिर लेंगे बोसे ख़ंजर-ए-क़ातिल के चार पाँच

कहने हैं मतलब उन से हमें दिल के चार पाँच
क्या कहिए एक मुँह हैं वहाँ मिल के चार पाँच

दरिया में गिर पड़ा जो मिरा अश्क एक गर्म
बुत-ख़ाने लब पे हो गए साहिल के चार पाँच

दो-चार लाशे अब भी पड़े तेरे दर पे हैं
और आगे दब चुके हैं तले गिल के चार पाँच

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