प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने यूँ भी अक्सर चूम लियातुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लियामैं क्या जानूँ मंदिर-मस्जिद, गिरिजा या गुरुद्वाराजिन पर पहली बार दिखा था अल्हड़ रूप तुम्हारामैंने उन पावन राहों का पत्थर-पत्थर चूम लियातुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लियाहम-तुम उतनी दूर- धरा से