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आमुख

5 मई 2022

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"मुट्ठी भर रेत" काव्य संग्रह में इंद्रधनुषी रंगों से रंगी अनेकानेक रचनाएं हैं। कहीं मां के आंचल की सुगंध है,तो कहीं देश-भक्ति का रंग दिखाई देता है। कुछ रचनाएं समाज को ललकारती हैं, तो कुछ प्रेम से पुचकार कर उन्नति के पथ पर अग्रसर करती हैं।    

मुश्किलें अपने साथ विश्‍वास की कमी लेकर आती हैं। हमारे भीतर का संकट मुश्किलों का सामना करने की हमारी क्षमता को हर दिन कम करता जा रहा है। यही कारण है कि मौसम थोड़ा सा भी हमारे विपरीत हो, तो हम घबराने लगते हैं। हमें लगता है कि अब क्‍या होगा। हम मुश्किलों से बाहर निकलने का रास्‍ता नहीं ढूंढ पाते हैं,जबकि होता वह हमारे भीतर ही है।  

संकट कैसा भी हो उसका स्‍वभाव रेत के टीले की तरह होता है। रेत के टीले हमेशा के लिए नहीं होते, वह हवा के झोंकों साथ बदलते रहते हैं। हमें बस अपने मन को शांत, स्थिर, धैर्यशील रखना है।  

ऐसा होता तो कैसे होता! काश यह न हुआ होता। जिंदगी ऐसी बातों से नहीं चलती। वह ठोस यथार्थ से आगे बढ़ती है। जो है, सो है। जो हुआ है, उसके किनारे-किनारे पर चलकर ही आगे बढ़ा जा सकता है।  

संकट के समय में गहरा विश्‍वास होना ही सबसे सुखमय जीवन शैली है। ख्‍वाब बुनिए, तरक्‍की के नक्‍शे बनाइए लेकिन जीवन में संतोष, स्‍नेह और प्रेम की कमी नहीं होनी चाहिए।  

 यह समय भी बीत जाएगा, ठोस जीवन की खूबसूरत जीवन शैली है। इसमें वह क्षमता है कि यह आपको डिप्रेशन, उदासी और तनाव की ओर बढ़ने से बड़ी सहजता से रोक सकती है।  

इसी के साथ ही यह "मुट्ठी भर रेत" काव्य संग्रह मैं आप सभी साहित्य प्रेमी पाठकों को समर्पित करती हूं।  

 मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आपको हरेक रचना प्रेरणा और आनंद प्रदान करेगी।  

  

  असीम शुभकामनाओं के साथ- 

  आपकी अपनी लेखिका- 

  डॉ.निशा नंदिनी भारतीय  

  आर.के.विला  

  बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी,  

  गली- ज्ञानपीठ स्कूल 

  तिनसुकिया, असम   786192 

  nishaguptavkv@gmail.com 

  समर्पित- सभी राष्ट्र भक्तों और साहित्य प्रेमियों को समर्पित 

  जय हिंद  

   

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रचनाएँ
मुट्ठी भर रेत
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"मुट्ठी भर रेत" काव्य संग्रह में इंद्रधनुषी रंगों से रंगी अनेकानेक रचनाएं हैं। कहीं मां के आंचल की सुगंध है,तो कहीं देश-भक्ति का रंग दिखाई देता है। कुछ रचनाएं समाज को ललकारती हैं, तो कुछ प्रेम से पुचकार कर उन्नति के पथ पर अग्रसर करती हैं।
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आमुख

5 मई 2022
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"मुट्ठी भर रेत" काव्य संग्रह में इंद्रधनुषी रंगों से रंगी अनेकानेक रचनाएं हैं। कहीं मां के आंचल की सुगंध है,तो कहीं देश-भक्ति का रंग दिखाई देता है। कुछ रचनाएं समाज को ललकारती हैं, तो कुछ प्रेम से पुचक

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लेखिका का परिचय

9 मई 2022
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डॉ.निशा गुप्ता साहित्यिक नाम डॉ. निशा नंदिनी भारतीय का जन्म 13 सितंबर 1962 में उत्तर प्रदेश के  रामपुर जिले में हुआ था। पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता रामपुर चीनी मिल में अभियंता थे और माता स्वर्गीय राधा

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आ गया नूतन सवेरा

5 मई 2022
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  रूप का सौरभ लुटाता      आ गया नूतन सवेरा।     गीत गाता गुनगुनाता    आ गया नूतन सवेरा।       नव सूरज नव प्रकृति     नव पक्षियों की चहक।    नव उषा पर नव प्रकाश     डाल रहा सारा आकाश।       अ

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डाकघर और प्रेम

5 मई 2022
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 डाकघर के होते ही कम    बढ़ रही कचहरियां।    चलते प्रेम से डाकघर    नफरत बढ़ाती कचहरियां।       इंतजार बहुत रहता था     प्रेम के परवाने का।    जोड़ता दिलों से दिलों को    चलते-फिरते फरमानों का

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रोम-रोम में बसने वाले

5 मई 2022
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  रोम-रोम में बसने वाले     सागर किनारे वाले।    बिगड़ी बनाने वाले     भक्तों के हो रखवाले।    जय-जय-जय,जगन्नाथ जी       ऊंच-नीच का भेद भुलाते    भक्तों पर प्रेम बरसाते।    रथ की शोभा बढ़ाते 

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यह उपवन सारा मेरा है

5 मई 2022
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 तितली बोली तू मेरा है    भंवरा बोला तू मेरा है।     असमंजस में पड़ा था फूल     ना मैं तेरा ना मैं उसका     यह उपवन सारा मेरा है।     मैं बांटता खुशियां सबको    रंगों की सौगात देता    सूरज दादा

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सदैव प्रभात साथ है

5 मई 2022
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सावन में लिखी कविता अब पक चुकी है पोर- पोर खिलकर धरती पर उतर चुकी है। मंत्रमुग्ध सी खड़ी निहार रही वसुंधरा पीत सरसों में लिपटी सकुचाई सिमटी सी धरा। खेत खलिहान मिल रहे बांसुरी बज रही डाल-डाल

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गंगा बहती जाए

5 मई 2022
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 कल-कल,कल-कल गीत     सुनाकर गंगा बहती जाए।    हर आने-जाने वाले को    प्रेम-पथ दिखलाए।       धाराओं के सम्मिश्रण से    मिलन द्वार ले जाए।    मत रूठो अपनों से तुम    सरल बात कह जाए।    आन पड़े

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कफ़न तिरंगा पाऊँ मैं

5 मई 2022
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 बस इतनी सी चाह मेरी     कफ़न तिरंगा पाऊँ मैं।    तेरी खुशबू से भर कर     सौ-सौ जन्म गवाऊं मैं।       केसरिया बाना मैं पहनूँ    केसरी रंग सजाऊं मैं।    इस तिरंगे की खातिर    सौ-सौ जन्म गवाऊं म

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जंगल जलेबियाँ

5 मई 2022
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  बचपन में     घर के पिछवाड़े से     माँ से छुपकर     मित्रों संग     तोड़ी थी जंगल जलेबियाँ     जिसका मिठास युक्त     तिक्त स्वाद    आज भी जिह्वा पर     बिखरा पड़ा है।        कांटेदार झाड़ि

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चौखट

5 मई 2022
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 चौखट ने देखा भूत, वर्तमान    भविष्य के लिए खड़ी तैयार।    सुख-दुख देखा मिलकर साथ    रूप-रंग खुशी ये सारे त्योहार।        दीप ज्योति से दमकती पंक्ति    साथी सच्ची मेरे हर पल की।    होली के गुला

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परवाने कहलाते है वो

5 मई 2022
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  शब्दों को चबाकर उगलते हैं जो    सही सांचे में ढल संवरते हैं वो।    कुछ करने का दम रखते हैं जो    हाथों की लकीरों को बनाते हैं वो।       तूफानी लहरों से नहीं डरते हैं जो    सदैव सफलता को थामते

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अंतर

5 मई 2022
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 हे प्रभु ! मानव- मानव में     अंतर क्यों ?    एक सिंहासन पर बैठा     एक जमीन पर बैठा क्यों ?    कोई जूठन को मजबूर     कोई अन्न फेंक रहा है।        मोहताज पैसे दो पैसे को    हाथ फैलाये खड़ा द्

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मुट्ठी भर रेत

5 मई 2022
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 पगडंडी के सहारे     रेत के कुछ कणों को,     हवा इतनी दूर ले गई कि रेत अपना वजूद खोकर     बिछ गई वतन की राह पर       कांटो को ढककर     पैरों को आराम दे दिया    सूरज की तपिश से     स्वयं जलकर 

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शबरी

5 मई 2022
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  प्रतीक्षा में बैठी शबरी     कब आओगे राम।    मेरे इन बेरों को खाकर     कब दोगे विश्राम।    नेह उड़ेल दूंगी उन पर     अब ना जाने दूंगी।     भक्ति के आंचल में फिर     पूरा समेट लूंगी।        प

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करवाचौथ का चांद

5 मई 2022
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  चतुर्थी के चांद को इतराते इठलाते    देखा     कभी बादलों में छिपते तो कभी झांकते देखा।    खड़ी थी लाखों सुहागने सजधज के दीदार के लिए    मदमस्त हो अपने रूप पर गर्वित होते देखा।       देख कर शीतल

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मेरा घर

5 मई 2022
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  एक मोहल्ले में था मेरा घर    जिसमें एक भी मकान नहीं था।     मोहल्ले के सभी घर सांस लेते थे    हर तरफ चैनों-ओ सुकून था।    रहती थी जिसमें दादी,नानी,    काकी,मामी,ताई,मौसी,     दादू और ताऊ की तो

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प्रभु मेरे

5 मई 2022
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 काटे नहीं कटती ये रातें     ख्वाबों में तुम आ जाना    जीवन अकेला सूना बहुत है....     कुछ तो सुकूं दे जाना...।       अंतिम पहर में तुम आना    पहलू में आकर खो जाना।    जीवन के सूनेपन को...  

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यादों का जमघट

5 मई 2022
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 लगभग चार दशक पुराने     दस बाइ बारह के इस कमरे में    यादों का जमघट जमा है।        गाहे-बगाहे मस्तिष्क जब     खंगालता है इसके हर कोने को    तो कहीं दिखाई देती है    दबी हुई चींख...     तो कही

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साहित्यिक यात्रा

5 मई 2022
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  असम में रहकर भी     मैं डरती थी बोडोलैंड से     मीडिया ने कोकराझार का     एक अलग ही मानचित्र     मेरे मन मस्तिष्क में     उकेर दिया था।        जब साहित्यिक महोत्सव में     कविता पाठ करने का

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वारिद समूह

5 मई 2022
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(1)    अलग-अलग रूपों में ढलता    देखो वारिद दौड़ रहा।     धरती पर आने को आतुर    विमान संग मचल रहा।        जहां जिसको मिली जगह     जम गया वारिद वहीं।    मानचित्र सा खड़ा कहीं पर    कहीं वृक्ष

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आओ अमृत महोत्सव मनाएं

5 मई 2022
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 आओ अमृत महोत्सव मनाएं     हम सीखें दुनिया को सिखाएं।    बुनकर संस्कृति ताना-बाना    सुंदर भारत आदर्श दिखाएं।        निद्रा से जागे सर्वप्रथम     औरों को जागृत किया।     दूर भगाकर अंधियारे को  

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शहरीकरण

5 मई 2022
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  मैं ग्रामीण भोला-भाला     मेहनत कर अन्ना उगाता हूँ।     खून-पसीना करके एक    दो निवाले खाता हूँ।     ना जानू मैं नियम कानून     मौजूं में अपनी रहता हूँ     हरा खेत है शान मेरी     आकाश तले मै

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अभिमान किसका

5 मई 2022
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 शब्द,अनुभूति और मर्यादा     इस कदर आपस में गुथे हैं     तुम चाह कर भी     नहीं कर सकते अलग उन्हें    बांधकर मर्यादा के बंधन से     शब्दों के मोती को     अनुभूति के धागे में     एक-एक कर प्यार

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माँ कभी मरती नहीं है

5 मई 2022
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 कौन कहता है     माँ नहीं रही    जब तक रहेगी बेटी     तब तक रहेगी माँ     माँ कभी मरती नहीं है।     हर बेटी के हृदय में     छिपी होती है    जाने अनजाने     चरित्र में आत्मसात होकर    हर काम म

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स्वार्थ के रिश्ते-नाते

5 मई 2022
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  जवानी के जाते ही    रिश्ते सब छूमंतर हुए     पति-पत्नी,बेटा-बेटी     न जाने कहां लुप्त हुए।     औंधे मुंह पड़े हुए     बूढ़ी मां खकार रही।     जल की कुछ बूंदे पाने को    रह-रह कर करहा रही।  

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वर्षा की पहली बूंदें

5 मई 2022
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  वर्षा की पहली बूंदों पर    जीवन के बिखरे रंगों पर,     कुछ तुम लिखो,कुछ मैं लिखूँ     कुछ तुम देखो,कुछ मैं देखूँ।       स्वागत में धरती खड़ी हुई    चुनर भी हरी-भरी हुई।    भागम-भाग मची सब ओर 

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सुकर्म की गाड़ी हांको

5 मई 2022
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  है अगर हिम्मत तो     सुकर्म की गाड़ी हांको    दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे     देख कर चलो।    प्रेम के बस्ते में     आनंद के फल भरो    कुकर्म से बचो     और बचाओ सबको।       मत पूछो किसी से     अपनी

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बर्फीली धरती

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 बर्फ की सफेद चादर में     लिपटी धानी धरती     न जानू ये नीला आकाश    या हरी-भरी परती।    मिल रहे गले धरती-आकाश    पुष्प वर्षा हो रही आसपास।       बर्फ की घास पर    बर्फ की गिलहरियाँ     ठंड

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कब आयेगा हमारा नव वर्ष

5 मई 2022
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 सूखे से इकलौते वृक्ष पर बैठी    एक गौरैया ने वृक्ष से पूछा     हर वर्ष नव वर्ष आता है    सब खुशियां मनाते हैं।        हम तुम निराशा में डूबे     करते हैं नव वर्ष की प्रतीक्षा     कब हम तुम पनप

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रास्ते बहुत हैं प्रेम दर्शाने के

5 मई 2022
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  मां,पत्नी,बेटी,बहन     किसी भी रूप में    किसी के भी साथ।    रास्ते बहुत हैं प्रेम दर्शाने के    बस जरूरत है ध्यान रखने की।       जब वह बनाती है भोजन    पूरी लगन,निष्ठा व प्रेम से    तब तुम

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कृशकाय कृषक

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 हम अपनी गोल रोटी    तन ढकने के वस्त्र     फूस के घर का छप्पर     पैरों के फटे जूते-चप्पल     इंद्रधनुषी सुनहरे सकृषक    सब मिट्टी से उगाते हैं।        पर कभी कभी मिट्टी भी     कठोर कर्कश हो ज

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सूरज फिर चमकेगा

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 इन नन्हों का क्या कसूर    इन्हें भी स्कूल जाना जरूर।    समय आएगा फितरत बदलेगी    तुम भी होगे जग मशहूर।    बर्फ के कदमों के निशां सी     पिघलती है जिंदगी।     आज हारी तो    कल जीती है जिंदगी।  

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साथी आना हाथ बढ़ाना

5 मई 2022
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  नील नभ पर हिम्मत रखकर    नव प्रभात रोशन करेंगे,     साथी आना हाथ बढ़ाना     मिलजुल कर हम संग चलेंगे।        देना एक दूजे का साथ    कट जाएगी काली रात,     नया सवेरा आने को है    तम व्योम छटने

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रेत के जंगल

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  नदी, हो सके तो     छुपा लो अपने आपको     ढूंढ रहे हैं रेत के जंगल तुम्हें।    लग गई है नजर    तुम्हारी खूबसूरती को     जाकर मां से नज़र का    टोटका करवा लो।       करके कब्जा तुम्हारे अर्धांग

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कल कहाँ है

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 कल कहाँ था, कहाँ है,    रहता कहाँ है ?    नहीं देखा किसी ने कल को।    भूलकर कल को,     जी लो भरपूर आज को    यह आज ही है सब कुछ    सब कुछ था,सब कुछ रहेगा।    सत्कर्म और प्रभु स्मरण से     जीवन

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रेशम का कीड़ा

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  किसे कहते हैं परोपकार     छोटा सा रेशम का कीड़ा भी     सिखा सकता है तुम्हें।       जिंदगी भर बुनता है रेशम    दूसरों के तन को     सजाने के लिए,     रेशा-रेशा तन बदन का    अर्पित कर प्राणों क

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मेरा भारत वंदनीय भारत

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 कण-कण मेरे देश का     मन-मन मुझे लुभाता है।     सपनीले गहरे नयनों को    आनंदमय कर जाता है।        स्वर्ण माटी की महक भीनी     अंतर्मन अभिभूत है।     उज्जवल-उज्जवल गंगा जल    शांति द्योतक दूत

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मां के आंचल से ही बनती है मां

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  आंचल से ढके सिर से निहारती है आकाश को    पकड़ कर एक हाथ बेटी का दिखा रही है चंदा मामा    सिलेट पोंछती आंचल से सिखा रही है सारेगामा।         आंचल से आंखों को ढके धूप से बचकर, निहारे एकटक बेटे का

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मेरा भारत महान भारत

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 मेरा भारत महान भारत     जन-जन का गणनायक है।     अमृत मिला मिट्टी में इसकी     हम सबका अधिनायक है।        खड़ा हिमालय प्रहरी बनकर नदियां इसकी झूमे गाएं।    खेतों में हरियाली फैली     चहक चहक कर

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भूदेवी को बचा लो

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  रे मानव ! हो सके तो     इस पृथ्वी को बचा लो।     इसके गुणों को पहचानो    कण-कण को निहारो।       पंच तत्वों से निर्मित काया    सांसों में तेरा भाव समाया।    अन्न-जल तू सबको देती    भेदभाव तनि

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मेरा भारत बदल रहा है

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  मेरा भारत बदल रहा है    सतयुग की ओर चल रहा है।     सुरमई श्यामल भोर हुई है    प्रेमिल सूरज उदय हुआ है।     मेरा भारत बदल रहा है...।       उदित हुआ है ज्ञान प्रकाश    अंधकार का नाश हुआ है।  

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ये सच्चे देवदूत धरा के

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  चेहरे पर छलके श्रम की बूंदें     सिर पर ईंटों का भारी बोझ।    यह मेरे अद्वितीय भारत की     अद्भुत,जीवंत,कर्मठ खोज।        कहते हैं लोग इन्हें मजदूर     ईंट-पत्थर,गारा ये ढोते हैं।     कम नहीं

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छोटा सा बीज

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 मैं छोटा सा सरल बीज हूँ     धरती में दबा रहता हूँ।     चीरकर धरती का सीना    बाहर निकल खुश होता हूँ।        फेंक दो मुझे कहीं भी     मैं अंकुरित हो फूटता हूँ।     राष्ट्र को समर्पित होकर    अ

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