रूप का सौरभ लुटाता
आ गया नूतन सवेरा।
गीत गाता गुनगुनाता
आ गया नूतन सवेरा।
नव सूरज नव प्रकृति
नव पक्षियों की चहक।
नव उषा पर नव प्रकाश
डाल रहा सारा आकाश।
अर्ध विकसित पुष्प
खिली अधखिली धूप।
फूल-फूल, कली-कली
सर्वत्र गुंजायमान मधुप।
मधु मकरंद बह रही
डाल-डाल गा रही।
दिशा-दिशा महक रही
गली-गली चहक रही।
रूप का सौरभ लुटाता
आ गया नूतन सवेरा।
गीत गाता गुनगुनाता
आ गया नूतन सवेरा।