भारत में फेमस होने के कई तरीके है। उनमें से प्रमुख दो तरीके हाल में ही सामने आए है। एक ये बोल दीजिये कि आजादी 1947 में नहीं, बल्कि 2014 में मिली है। दूसरी महात्मा गांधी या अन्य किसी विभूति की बुराई कर दीजिए। इसके बाद सोशल मीडिया दो भागों में जरूर बटेगी और एक भाग का सम्पूर्ण समर्थन आपको मिलना तय है।
भारत में ऐसा कोई भी कार्य नहीं बचा है जिसपे सम्पूर्ण भारत एक मत से आपका समर्थन करें। आप कुछ भी बोल दीजिये, वो चाहे कितना भी सही हो या चाहे कितना भी गलत हो, मीडिया, सोशल मीडिया और राष्ट्र के लोगो का दो भागों में बटना तय है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ आप कितना भी घिनौना कृत्य कर दीजिए, कुछ लोग आपके समर्थन में उतर ही जायेंगे। ठीक उसी प्रकार कितना भी महान कार्य कर दीजिए, एक तबका आपके पुरजोर विरोध में जरूर उतर आएगा।
क्या हमारे राष्ट्र में ऐसा कोई कार्य, या वक्तव्य नहीं बचा है, जिसको करने से या जिसे बोलने से राष्ट्र के पूरे सौ फीसदी नागरिक आपका समर्थन करे?
कोई तो ऐसा कार्य या वक्तव्य होगा? जिसे सौ फीसदी समर्थन मिले। और जरूर कोई न कोई ऐसा व्यक्ति भी होगा जो 100% सही बोलता होगा, फिर आखिर किसी को भी पूर्ण समर्थन क्यों नही मिलता?
यानि इससे स्पष्ट है कि हमारी आँखों पे पट्टी बंधी है। और इस वजह से हमारे अंदर सच, झूठ, धर्म अधर्म को पहचानने की क्षमता नहीं है। हमारे देश के मुख्य मुद्दों में से एक मुद्दा यह भी है। मेरा मानना है कि हमें किसी को अपशब्द बोलने के पहले या किसी के बारे में गलत सोचने के पहले जरूरत है उसके बारे में अच्छे से पढ़ने की। और अच्छे से पढ़ने का मतलब ये नहीं है कि कोई भी रैंडमली एक किताब उठाये और पढ़ डाले। अच्छे से पढ़ने का मतलब ये है कि उनसे संबंधित अधिक से अधिक किताबे पढ़े ही, साथ ही साथ अपने भीतर व्याप्त विवेक से (बाहरी और सोशल मीडिया वाले विवेक से नहीं) उनका उचित मूल्यांकन करे । बोलना, आरोप लगाना और तारीफ करना बहुत आसान है। समस्या ये नहीं है कि हम गलत बोलते है, या किसी के बारे में गलत सोचते है, समस्या ये है कि हम आने वाली पीढ़ी को क्या सीखा रहे है?
हम कितने रिजिड हो चुके है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारे साथ चाहे कितना भी गलत हो, हम किसी भी चीज़ को predetermined नजरिये से ही देखते है। हमारे सोचने के तरीके वाली डिक्शनरी में से फ्लेक्सिबिलिटी यानि लचीलापन नामक शब्द गायब है। और यदि किसी की डिक्शनरी में है भी तो उसे मिटाया जा रहा है।
मैं आप सभी पूछता हूँ कि दुनिया की कौन सी ऐसी राजनैतिक पार्टी है जो हर कार्य 100% सही करती है? बिल्कुल कोई कार्य या कुछ कार्य 100% सही हो सकते है। लेकिन क्या सारे कार्य 100% सही हो सकते है? इस कलयुगी दुनिया में क्या ये संभव है? फिर क्यों हम आँखों पर पट्टी बांधकर किसी एक पार्टी का पुरजोर समर्थन करते है और दूसरी पार्टी का भरपूर विरोध? सही या गलत का फैसला महज पार्टी से होनी चाहिए या कार्यों से? कुछ लोग एक विशेष पार्टी का पुरजोर समर्थन करते है, कुछ लोग दूसरी पार्टी का। जो ज्यादा सही कार्य करे उसके प्रति झुकाव ज्यादा होना चाहिए,लेकिन अगर वो गलत करे तो उसका भरपूर विरोध भी होना चाहिए। लेकिन आजकल ऐसे लोग गिनती के ही बचे है। कुछ लोगों को तो फेमस होना है, फर्जी राष्ट्रवाद का चोला पहन कर लेकिन हम क्या कर रहे है? अपने राष्ट्र की दिशा और दशा हम मोड़ने में जरूर लगे है, लेकिन शायद गलत दिशा में। नये वर्ष के अवसर पर भारत के नागरिक होने के कारण हमें सही तरीके से एवम भीतरी विवेक से सोचने की जरूरत है। अपने अन्तर्मन से पूछने की जरूरत है कि क्या सही और क्या गलत है। और 2022 में हमारा संकल्प यही होना चाहिए कि हमारी सोच में ज्यादा गहराई हो क्योंकि जितनी गहरी सोच, उतना गहरा परिणाम। आत्मचिंतन जरूरी है, क्योंकि सुधार इसी से संभव है।
अंत में आप सबको नए वर्ष की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं।
जय हिंद, जय भारत🇮🇳🙏💐💐