सम्मान तो हर तरह का ही कीमती होता है लेकिन इनमें सर्वोपरि है-आत्मसम्मान। आत्मसम्मान को चोट लगती है ना तो इंसान बौखला जाता है । आत्मसम्मान पर ठेस के कारण ही अम्बा ने शिखंडी बनकर पितामह भीष्म से बदला लिया। गुरु द्रोणाचार्य ने अपने परम मित्र महाराज द्रुपद को अर्जुन से पराजित करवा के अपने आत्मसम्मान पर लगी ठेस का प्रतिशोध लिया जो द्रुपद ने उनको अपमानित कर के लगाई थी । द्रोणाचार्य के इस प्रतिशोध से द्रुपद के आत्मसम्मान को जो धक्का लगा,उसी कारण उन्होने ईश्वर से ऐसे पुत्र की कामना की जो द्रोणाचार्य का वध कर सके । और भी न जाने ऐसी कितनी ही कहानियाँ हैं जो इस बात का उदाहरण हैं कि आत्मसम्मान के ह्रास ने अनेक लडाइयों और संग्रामों को जन्म दिया है।अनुज कक्षा का एक दुबला-पतला सा लड़का था मगर निहायत अकडू । अपने दुबलेपन के कारण अक्सर सभी सहपाठियों के बीच मजाक का पात्र बना रहता था ।शिक्षक भी कभी-कभी बातों ही बातों में उसके दुबलेपन पर व्यंग्य कस देते तो पूरी क्लास ठहाकों से गूँज उठती । वह सबसे लड़ता,सब पर अकड़ता फिरता लेकिन सब उसे मजाक में टाल देते ।
उसी क्लास में रंजन नाम का एक लड़का था जो निहायत सनकी था और इसीलिये कोई भी उससे नहीं उलझता था। एक दिन अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर अनुज का रंजन और उसके साथी से झगड़ा हो गया । रंजन उसे मारने पर उतारु हो गया लेकिन उस वक़्त कुछ लोगों ने उनका बीच-बचाव कर दिया। रंजन के दिल में यह कसक रह गई कि उसने अनुज जैसे अकडू लड़के को पीट नहीं पाया। अब वह अनुज से झगड़े के मौके खोजने लगा। अनुज उससे बहुत बचता रहता था लेकिन एक दिन रंजन को मौका मिल ही गया ।रंजन क्लास में किसी से झगड़ा कर रहा था । आए दिन उसका किसी न किसी से झगड़ा होता ही रहता था । उस दिन अनुज ने बीच में रंजन के खिलाफ कुछ बोल दिया । रंजन को तो ऐसे ही मौके की तलाश थी। उससे पहले कि कोई समझ पाता रंजन ने भरी क्लास में तीन-चार तमाचे अनुज के जड़ दिए और चिल्लाने लगा कि तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में बोलने की। तेरी औकात है मुझसे बात करने की! बगैरह बगैरह। बाकी लड़कों ने रंजन को पकड़ा वर्ना वो अनुज की जान लेने पर उतारु था। अनुज का चेहरा अपमान से फीका पड़ गया और रंजन का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था । थोडी देर बाद अनुज क्लास से बाहर चला गया । सबको लगा कि बात शांत हो गई लेकिन नहीं । अनुज अपनी भरी क्लास में हुई बेइज्जती का खयाल दिल से निकाल नहीं पा रहा था । सब लोग उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे? वह इतना कमजोर क्यों है? उसे अपनी कमजोरी और बेवसी पर गुस्सा आ रहा था । वह अब क्लास में कैसे मुँह दिखायेगा! वह पूरे दिन इन्हीं सब बातों से जूझता रहा। अन्ततः उसने दृढ़ता से निर्णय लिया कि अब वह अपना यह बेइज्जत हुआ चेहरा किसी को नहीं दिखायेगा । वह जगह हमेशा -हमेशा के लिए छोड़कर चला जायेगा । रात को जब सब लोग मेस चले गए, अनुज ने अपना सामान समेटा और हॉस्टल छोड़ दिया। कभी न वापस आने के लिए । उसने अपनी अधूरी पढ़ाई का भी खयाल नहीं किया क्योंकि यह उसके आत्मसम्मान से ज्यादा जरुरी नहीं थी। उस दिन के बाद अनुज को किसी ने नहीं देखा। उस दिन के बाद अनुज ने सबसे सम्पर्क तोड लिया।
हाँ! क्लास में अभी भी कभी-कभी उसकी बातें होने लगती हैं जो कुछ अच्छी यादों के साथ एक गम का निशां छोड़ जाती हैं । यह निशां है अनुज के अचानक सबकुछ बीच में छोड़कर चले जाने का। अब अनुज एक याद बनने के साथ-साथ एक सबक भी बन चुका है जो किसी को किसी के आत्मसम्मान पर चोट करने से पहले रोक देता है ।
-संध्या यादव "साही"