रोज़ बढ़ रही हिंसा, ये बढ़ती नाइंसाफी,
दोषी बचकर घूम रहे निर्दोष मर रहे काफी,
कब होगी बंद ये प्यास खून की,
कब जाने ये अंधे जानेंगे कीमत खून की,
क्या होगा इस देश का, अन्धकार नज़र आता है,
दुश्मन का स्वपन साकार नज़र आता है,
क्या होगा यदि दुश्मन साख जमा लेगा,
संपत्ति, समृद्धि खाक बना देगा,
अत्याचार नित्य बढ़ रहे, हो रहे नरसंहार,
सदाचार का अंत नज़र आता है,
भाई को भाई पर नहीं विश्वास,
मानव दुष्चरित्र पर प्रकृति कण-कण रोता,
कुछ वास्तविक नहीं रहा,
ट्रांसिस्टर भी बम नज़र आता है,
आतंक का खौफ नज़र आता है,
आत्मविश्वास जगाओ, आतंकवाद को दूर भगाओ.