अमीरों ने मुन्ताकिब किया गरीबों का मसीहा.
गरीबों को इंतिख़ाब का अख़्त्यार कहा हैं. (आलिम)
नसीब नहीं जिनको है निवाला ए दो वक्त,
ख़ाक वो अपने मसीहा को चुनेंगे. (आलिम)
मसीहा भी उन्ही का और ख़ुदा भी उन्ही का,
हम में कोई क़ाबिले इन्तिख़ाब कहाँ है. (आलिम)
ज़रूरतमंद को जो मिल जाए इनाम ए गुलामी,
उसके लिए ख़ुदा क्या और मसीहा क्या है. (आलिम)
ईमान भी बिक जाते है ख़ातिर ए निवाला,
गर्दिशज़दा ख़ुद की आज़ादी क्या जाने. (आलिम)
परिन्दे को कर कैद सुनहरी पिंजरे में, पांसबा ने पूंछा, बता ज़िंदगी क्या चीज़ है.
परिन्दे ने हंस के कहा आज़ादी का जहाँ हक़ ना हो वहाँ जीना भी क्या चीज़ है. (आलिम)