परिवर्तन की चाल जब धीमी रहती है , तब उसे सुधार कहते है, किन्तु जब वह बहुत तेज़ हो जाती है, तब उसे क्रांति कहने का रिवाज़ है. (रामधारी सिंह दिनकर) विश्व में सबसे पहली क्रांति फ़्रांस की क्रांति को माना जाता है और उसके बाद लगभग पुरे यूरोप में क्रांतियां हुई. और फिर पुरे विश्व में. हिन्दुस्तान इन क्रांतियों से अछूता रहा. हिन्दुस्तान में आज़ादी की लड़ाई में जिन वीरों को हम क्रांतिकारी बताते है दरअसल वो आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे ना कि किसी तरह की क्रान्ति की कोशिश कर रहे थे. हम गांधीवाद को अहिंसात्मक आज़ादी की लड़ाई माने तो दूसरे को हिंसात्मक आज़ादी की लड़ाई कह सकते है. आज़ादी की लड़ाई और क्रान्ति में अंतर है. हिन्दुस्तान में जिन्हे हम क्रांतिकारी कह सकते है उनमे कुछ नाम है जैसे राजा राम मोहन राय, ज्योतिराव गोविंदराव फुले, सावित्री बाई फुले, बाबा साहेब अम्बेडकर, महात्मा गाँधी. गाँधी एक तरह से दो-दो लड़ाई लड़ रहे थे , एक तरफ अंग्रेज़ों से और दूसरी तरफ समाज की कुरीतियों से. भीम राव अम्बेडकर और गांधी जी मतभेद की बात की जाती है, लेकिन सच्चाई यह है कि मतभेद नहीं थे और दूसरे शब्दों में कहे तो गांधीजी परिवर्तन की राह पर थे और अम्बेडकर क्रान्ति की. अम्बेडकर हिन्दुस्तान की आज़ादी के पक्ष में नहीं थे क्योकि उन्हें डर था कि आज़ादी के बाद सत्ता स्वर्णजाति के हाथों चली जायेगी और उनकी सामाजिक क्रान्ति का अंत हो जाएगा, दलित अधिकारों से वंचित कर दिए जाएंगे. गांधी का विचार था कि पहले किसी तरह आज़ादी ले ली जाए और फिर समाज के सुधार के लिए काम किया जाए. गांधी जी जानते थे अगर आज़ादी से पहले सामाजिक क्रान्ति की गई तो हिन्दुस्तान कभी आज़ाद नहीं हो सकेगा. हिन्दुस्तान की जनता धर्म और जाति के नाम पर बट जायेगी और अँगरेज़ इसका फ़ायदा उठाएंगे. अंग्रेज़ो की हुकूमत इसी बटवारे पर खड़ी थी और गांधी जी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि सबको साथ रखा जाए. गांधी जी अंग्रेज़ों को कोई भी मौका नहीं देना चाहते थे जिससे वो अपनी हुकूमत पर पकड़ बनाये रख सके. यही कारण था कि गाँधी जी हिंसा को दूर रखना चाहते थे, क्योकि हिंसा का मतलब अंग्रेजी हुकूमत को उसे दबाने के लिए फौज का इस्तेमाल करना पड़े और यह आंदोलन खत्म हो जाए. इसके अलावा भी गांधी जी का डर था कि अगर हिंसा से आज़ादी ली तो हिन्दुस्तान में हिंसा का एक दौर शुरू हो जाएगा धर्म और जाति के नाम पर और उससे होने वाली तबाही से कोई बचा नहीं पायेगा ऐसे में विदेशी ताकते जिनकी नज़र हिन्दुस्तान पर थी वो उसका फायदा उठाएंगी. जापान और जर्मन दोनों की निगाहें हिन्दुस्तान पर थी , अंग्रेज़ों को निकालने के चक्कर में कही हिन्दुस्तान जापानियों या जर्मनों का गुलाम ना बन जाए. जर्मन और जापान अंग्रेज़ों से ज्यादा बर्बर थे. चीन से लेकर सिंगापोर तक जापानियों ने कब्ज़ा कर लिया था कितने लोगो को मौत के घाट उतार दिया था. जर्मन की हिटलर की कहानी तो हर कोई जानता है ऐसे में गांधी जी कोई भी खतरा मोल लेना नहीं चाहते थे. यही कारण था वो सुभाषचंद्र बोस से सहमत नहीं थे. (आलिम)