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कुछ लफ्ज मिल जाते मुझे कहीं भी, कुछ मन से लिख लेता हूँ अल्फाज मै। कभी पढ़ता हूँ आँखे और मन किसी के, कभी पढ़ लेता हूँ किताब मै।
मै कभी कैद नहीं हुआ मोहब्बत के पिंजरे में, न जाने कैसे बन गया कैदी अल्फाजों का। मै कैसे कह दूँ की मोहब्बत फरेबी है , मुझे ज्ञान नहीं मोहब्बत के सुर साजो का।