आचार्य अर्जुन तिवारी
आचार्य अर्जुन तिवारी पुराण प्रवक्ता / यज्ञाचार्य ग्राम व पोस्ट - बड़ागाँव (रेलवे स्टेशन) तहसील - सोहावल थाना - रौनाही जनपद - श्री अयोध्या जी पिन - २२४१२६ बचपन से ही भगवत्पथ के पथिक बनने की चाह में कुछ लिखना प्रारम्भ किया ! शनै: शनै: कीर्तन - रामायण का आश्रय लेते हुए अपनी शिक्षा आचार्य तक पूरी की तथा पिताजी से ज्ञानार्जन करके पुराणों की कथाओं का अध्ययन करते हुए व्यासपीठ पर पुराणों का प्रवचन एवं ब्राह्मणोचित यज्ञादि कर्म सम्पन्न करवाते हुए लेखन के क्षेत्र में भी सूक्ष्म प्रयास करते रहे ! आज हमारी कई पुस्तकें शब्दनगरी के प्लेटफॉर्म प्रकाशित हैं !
सनातन विचार
हमारा जीवन कैसा था , और अब कैसा होता जा रहा है ! हम अपने संस्कारों को कैसे भूलते चले जा रहे हैं इस पर विचार करने की आश्यकता है ! सत्य सनातन धर्म की मान्यतायें अलौकिक एवं दिव्य रही हैं परंतु आज का सनातनी अपनी मूल मान्यताओं से विमुख होते हुए आधुनिक कल्
सनातन विचार
हमारा जीवन कैसा था , और अब कैसा होता जा रहा है ! हम अपने संस्कारों को कैसे भूलते चले जा रहे हैं इस पर विचार करने की आश्यकता है ! सत्य सनातन धर्म की मान्यतायें अलौकिक एवं दिव्य रही हैं परंतु आज का सनातनी अपनी मूल मान्यताओं से विमुख होते हुए आधुनिक कल्
श्रीराम एवं नाम महिमा
इस संसार में भगवान का नाम भगवान से बड़ा है ! नामी की पहचान नाम से ही होती है ! नाम की महिमा का गुणगान आदिकाल से होता चला चला आया है ! नाम की शक्ति , नाम का आकर्षण एवं नाम का प्रभाव सर्वविदित है ! किसी भी व्यक्ति की पहचान दो प्रकार से होती है ! प्रथम
श्रीराम एवं नाम महिमा
इस संसार में भगवान का नाम भगवान से बड़ा है ! नामी की पहचान नाम से ही होती है ! नाम की महिमा का गुणगान आदिकाल से होता चला चला आया है ! नाम की शक्ति , नाम का आकर्षण एवं नाम का प्रभाव सर्वविदित है ! किसी भी व्यक्ति की पहचान दो प्रकार से होती है ! प्रथम
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौ
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौ
नवदुर्गा रहस्य एवं नारी
नारी आद्याशक्ति , सृष्टि का मूल एवं नर की जन्मदात्री है ! नवरात्र जैसे पावन अवसर पर महादुर्गा के विभिन्न स्वरूपों मे नारी शक्ति का पूजन सम्पूर्ण समाज करता है परंतु वह यह भूल जाता है कि उनके घर में जो नारी है वह भी उसी जगदम्बा का अंश है ! नारी जगतजननी
नवदुर्गा रहस्य एवं नारी
नारी आद्याशक्ति , सृष्टि का मूल एवं नर की जन्मदात्री है ! नवरात्र जैसे पावन अवसर पर महादुर्गा के विभिन्न स्वरूपों मे नारी शक्ति का पूजन सम्पूर्ण समाज करता है परंतु वह यह भूल जाता है कि उनके घर में जो नारी है वह भी उसी जगदम्बा का अंश है ! नारी जगतजननी
सोलह संस्कार (विधि सहित)
मानव जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! बिना संस्कार के मनुष्य होकर भी मनुष्य पशु के ही समान है ! संस्कारों के महत्व को देखते हुए मानव जीवन में जन्म के पहले से लेकर मृत्युपर्यन्त १६ संस्कारों की व्यवस्था सनातन धर्म में बनाई गयी है ! इस पुस्तक क
सोलह संस्कार (विधि सहित)
मानव जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! बिना संस्कार के मनुष्य होकर भी मनुष्य पशु के ही समान है ! संस्कारों के महत्व को देखते हुए मानव जीवन में जन्म के पहले से लेकर मृत्युपर्यन्त १६ संस्कारों की व्यवस्था सनातन धर्म में बनाई गयी है ! इस पुस्तक क
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!
इस संसार में जितने भी क्रियाकलाप हो रहे सब भगवान की कृपा से ही हो रहे हैं ! बिना भगवत्कृपा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है ! इसलिए चराचर जगत में भगवत्कृपा का दर्शन करते हुए इस जीवन एवं जीवन में घटने वाली समस्त घटनाओं को भगवत्कृपा का प्रसाद मानते हुए ह
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!
इस संसार में जितने भी क्रियाकलाप हो रहे सब भगवान की कृपा से ही हो रहे हैं ! बिना भगवत्कृपा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है ! इसलिए चराचर जगत में भगवत्कृपा का दर्शन करते हुए इस जीवन एवं जीवन में घटने वाली समस्त घटनाओं को भगवत्कृपा का प्रसाद मानते हुए ह
हमारी संस्कृति एवं हम
हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्
हमारी संस्कृति एवं हम
हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्
ये कहाँ आ गये हम
आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमार
ये कहाँ आ गये हम
आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमार
श्री लक्ष्मण चरित्र
त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहु
श्री लक्ष्मण चरित्र
त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहु