पवित्र श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा सर्वत्र हो रही है ! शिवलिंग का पूजन करके भक्तजन अपनी अभिलाषाएं / मनोकामना पूर्ण करने का प्रयास कर रहे हैं ! भगवान शिव क्या हैं ? लिंग क्या है ? कितने प्रकार का होता है ? इसके विषय में बताया गया है कि समस्त अभीष्ट वस्तुओं को देने वाला प्रणव ही "प्रथम लिंग" है जो कि सूक्ष्म प्रणवरूप है "सूक्ष्मलिंग" निष्कल होता है और स्थूललिंग सकल ! पंचाक्षर मंत्र को ही "स्थूललिंग" कहा जाता है ! "स्थूललिंग" एवं "सूक्ष्मलिंग" दोनों ही साक्षात मोक्ष प्रदान करने वाले हैं ! इसके अतिरिक्त "पौरुषलिंग" एवं "प्रकृतिलिंग" के बहुत से रूप है , जिनमें से कुछ मुख्य कह गए हैं ! जैसे :- स्वयंभूलिंग , बिंदुलिंग , प्रतिष्ठितलिंग , चरलिंग एवं गुरुलिंग आदि ! देवर्षियों की तपस्या से संतुष्ट होकर उनके समीप प्रकट होने के लिए पृथ्वी के अंतर्गत बीजरूप से व्याप्त हुए भगवान शिव वृक्षों के अंकुर की भांति भूमि को भेदकर "नादलिंग" रूप में व्याप्त हो जाते हैं ! वह स्वतः व्यक्त हुए शिव ही प्रकट होने के कारण स्वयंभू नाम धारण करते हैं ! इन्हें ही "स्वयंभूलिंग" कहा जाता है ! सोने चांदी आदि के पत्र पर , भूमि पर अथवा बेदी पर अपने हाथ से लिखित जो शुद्ध प्रणव मंत्र रूपलिंग है उसमें तथा यंत्रलिंग का आलेखन करके उसमें भगवान शिव की प्रतिष्ठा और आवाहन करना ही "बिंदुलिंग" कहा जाता है ! "बिंदुलिंग" स्थावर एवं जंगम दोनों प्रकार का होता है ! देवताओं और ऋषियों ने आत्मसिद्धि के लिए अपने हाथ से वैदिक मंत्रों के उच्चारण पूर्वक शुद्ध मंडल में शुद्ध भावना द्वारा जो उत्तम शिवलिंग की स्थापना की उसे "पौरुषलिंग" या "प्रतिष्ठितलिंग" कहा जाता है ! लिंग , नाक , जिह्वा , नासिका का अग्रभाग और शिखा के क्रम से कटि , हृदय और मस्तक तीनों स्थानों में जो लिंग की भावना की गई है उस आध्यात्मिक लिंग को ही "चरलिंग" कहा जाता है ! बुद्धिमान पुरुष को अपने गुरु के शरीर को ही "गुरुलिंग" समझना चाहिए ! गुरुजी की सेवा सुश्रुषा ही गुरुलिंग की पूजा कही गयी है !*
*आज प्राय: पार्थिवलिंग के पूजन का विधान बताया जाता है परंतु हमको यह भी जानना चाहिए कि हमें किस लिंग का पूजन किस भावना के साथ करना चाहिए और लिंग किसे माना गया है ! पृथ्वी पर जितने भी पर्वत हैं उन्हें "पौरुषलिंग" कहा गया है और भूतल को "प्रकृतिलिंग" माना गया है ! वृक्ष "पौरुषलिंग" की श्रेणी में आता है ! "चरलिंगों" में सर्वप्रथम "रसलिंग" का वर्णन है !:किस वर्ण को किस लिंग का पूजन करना फलदाई होगा यह जानना बहुत आवश्यक है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" पुराणों के माध्यम से बताना चाहता हूं कि "रसलिंग" ब्राह्मणों की उनकी सारी अभीष्ट वस्तुओं को देने वाला है ! शुभकारक "बाणलिंग" क्षत्रियों को महान राज्य की प्राप्ति करने वाला है ! "स्वर्णलिंग" वैश्यों को महाधनपति का पद प्रदान करने वाला है तथा सुंदर "शिलालिंग" शूद्रों को महाशुद्धि देने वाला है ! "स्फटिकलिंग" तथा "बाणलिंग" सब लोगों को उनकी समस्त कामनाएं प्रदान करते हैं ! यदि स्वयं के पास कोई भी शिवलिंग ना हो तो दूसरे के मंदिर में स्फटिक या बाणलिंग की पूजा कर लेनी चाहिए ! विशेष रूप से सधवा स्त्रियों के लिए पार्थिव लिंग की पूजा का विधान है ! प्रवृत्ति मार्ग में स्थित विधवा स्त्री स्फटिक लिंग की पूजा कर सकती है परंतु विरक्त विधवाओं के लिए रसलिंग की पूजा को ही श्रेष्ठ कहा गया है ! बचपन में , युवावस्था में और बुढ़ापे में भी शुद्ध स्फटिक में शिवलिंग का पूजन स्त्रियों को समस्त भोग प्रदान करने वाला है ! गृहशक्त स्त्रियों की के लिए पीठ पूजा भूतल पर संपूर्ण अभीष्ट को प्रदान कराने वाली है ! भगवान शिव की पूजा करके उनकी कृपा सबको प्राप्त करनी चाहिए ! भगवान शिव की कृपा से कर्म आदि सभी बंधन अपने बस में हो जाते हैं ! कर्म से लेकर प्रकृति पर्यंत सब कुछ जब बस में हो जाता है तब वह जीव मुक्त कहलाता है और स्वात्मारामरूप से विराजमान हो जाता है !*
*किसी भी पूजा में श्रद्धा - विश्वास एवं भक्ति - भावना का विशेष महत्व है ! बिना श्रद्धा विश्वास के न तो पूजन की पूर्णता होती है और न ही उसका यथोचित फल ही प्राप्त होता है ! अत: कोई भी पूजन करने के पहले मानव मन में इनका होना परम आवश्यक है !*